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________________ २१४ sfaवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि श्लोक दालिग्री व रोमिनो मूर्खः दयादान विवजितः । क्षरण ग्राही कलंकी व जीवितोपमृतोषि च ॥ २३६॥ ताक पुरिसहि कमि किम घाउ, रह्यौ बिचारि अवरण को राज । दोऊ हृणत परताकी हाहि बहू राउ एह मन जाणि ॥ २४०॥ राजा गशोधर का वापस जाना- चित्रसाल पालिक परिगयो, कारस्णु करें राज मन कुरि, राणी काम भूत को गही उगमातिउरपति डर लई, जा गाडर विजराई मे मलिए सही पोटी दे। कुणि पिय भुज पंजर संचरी, नामिरिण जणकु महाविष भरी || २४३।। करती राज सरस रस केलि सो यत्रभई महाविस केलि । यह दुषु वह सुषु वर कोनु, पापिति दियो धाइ जनु लोनु || २४४॥ श्लोक नृमतं न विषं किंचित् एषां मुक्ता वरांगणां । सेवामृतमयो रक्ता बिरक्ता विश्वल्लरी ॥२४५॥ जनकु बज्र की ह्यो । विडिउ परिहस अगिरिण दई लण पूरि ।। २४१ ॥ रमि कुबरों चली गुण रही। पेषि स्वानस्यारि बन दई ।। २४२॥ चौपई मणि लागी केम परेस अनु राषि सिनि भिहा वण भेस अपत निलज्ज पापकी पुरी, डाइ जग्गकु सुदी गहि जुरी || २४६|| बोहा सहि गारने मन चितवे पेषिति नारि चरित्र | देहू महातरु प्रभु तणो, दुष महाचल सिस, ॥ २४७॥ हाहा एह भणछु जगि कासु कहि जर भासि । अपजस लाज पयासरणौ पावकु कम्महू रासि ॥२४८ ही कोहनलु तिय चरिउ देह वनंतरि लग्गु । चित्त, विहंगमु मु तनो उडिवि व दिहि मम् ॥ २४६ ॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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