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यशोधर चौपई
सुंदरि जोवनु जान दे, मद जो जाइत जाउ । सीलु महंगा मति दरौ, श्रानह जनम सहाइ ॥ २००॥ सुंदरि जोवनु राजु श्रनु, पेषिन किज्जै गब्बु । संवर सीलुन छांडिये श्रवसि विनस्से सम्व् ॥ २०१ सुनि फुल्लार बिंद मुख जोति, छाडहि रयनु गहि क्रिम पोति । राजहि हंसु क्रिम सेवहि कामु भूलो भई बिलाबहि नागु || २०२ | सुरपति खाडि रमहि किम भूतु । रानी क्रेम करहि धरु मंडु || २०३॥
श्रनतु तजि पीवहि विष मृतु, छाडि ईष किम गोबहि श्रंड,
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सील रयतु तिलोक पहानु, सीलु नारिमंडल गुन ठानु । सोभू संजम भाव कहि, फोरि दहै डीकामनु देहि || २०४ ||
माता-पिता ससुरु अरु सासु, पेषि बिचारि स कुलु वासु । राउ भवा तनु घर सूनु, चौक चढो बाटहि क्रिम चूनु || २०५ ।। ग्ररु तू एक विचारहि मापु, करत कुम्म्मं न दुरि पापु । नीर बिस्तरै ||२०६ ॥
कर तारुण सहै ।
ता बही कान दुबन के परे, जैसे तेल अरु जी केम फेम दुरि रहे, तो पा व्याप रोग योग तन रोर, फुनि नरकादि स दुष घोर ।। १०७ ।। पर तू सामिनि पेषि विचारि, यह अपजस चलिहे जुग चारि । मेरे कहत राषि मनु पंचि, लिय तुल कारण रयनु मन छेत्रि ।। २०८ |
तू मातुरी करहि किस एह जाहि रमनप्पो छाहि गेह । काहि जिया तस से की बाल, नारि मरण बुबि भई प्रकाल || २०६॥ णिसुन पे करत कुपाट, तो महिषो दिगडावे राउ | तो सुन्दर मरिये दुष देषि, मै सिष सामिनि दई विशोषि ।।२१०|| जिम माष चंदनु परिहरे, विगधि अमेध जाइ रति करें । वहि कुवरी राजा छाडि, सेलु पाइ धो धरिये गाडि || २११|| ताकै जीवन दीजं ऊक, वयण बेह भरु जीवत्त थूक । तपत तासु भग दीजं डाहू, सा यो छाडि बरे परना ।।२१२ ।।
रामो का उत्तर
सी बचनु सुनि बिलषी वाल, जरो रबि किरणि पुष्फक्री माल 1 कुंद इसनि बोलें पहू नारि, काज आफ्नो करि म नुहारि ।। २१३ ॥
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