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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
हो रानी किम वरनो तासु, मुहू पेष तिहु पर उपासु । आहि मुनत दुपु उपज कान, सुंदरि कहहि तामु पहूजान ॥१८॥ वात नु हासी झूटी मोहि, भमिनि पनि सदो किम तोहि ।
तो पिउ रमत भई अधरात, तो न तो रति उपजो गात ।। १६॥ रानी वचन
सुनि वचनु रानी कलमली, पभने त सिष दीनी भली । क्यनु एकु मेरो निसु नेह, चंपक माला कानु थिरु देह ।। १६१।। गोत नाद वेधिये सुजानु, निसुनि हरिन फुनि देइ परानू । अह जो वालकु रोवतु होइ, निसुनत रहे गोद महू सोई ।।१६२॥ होइ कौविजौ उस्यो मुजंग, निसुनि गीतु विषु रहै न अंग । चतुर सुजान जिते नर नारि, जे आनहि सुनि मूड गारि ॥१६॥
श्लोक सुषणिसुखनिधानं दुनितानां विनोदः । श्रवण हृदयहारो मन्मथस्याग्रदूतः । प्रति चतुर सुगम्पो वल्लभो कामिनीनां । जयसि जगति नादो पंचमो भाति वेदः ।।१४।। राग तने गुण जानहि माइ, मो मूरिष सौ कहा इसाइ । जानहि तू न हमारी भीर, पालुं जिम भेदिये न नीर ।।१६५!! किमि मुह मोरि हसै घर वसी, मेरी मरण तुहारी हसी ।
आमि सनी तेरी बलिहारू, इतनी करि मेरो उपगारू ।। १६६।। चंपक माला का उत्तर--
चंपक माल कहै विचारि, जानी निगु सत होली नारि । रानी केम भइ बावरी, को सुनि सीतु कि व्यंतर धरी ।।१९७||
वोहरा हा सुर सुदरि सम सरिस, फेम पयासहि एह । सतो न बल्ल? परिहर, अवरु कर नहि नेहू ।। १६॥ भामे निप्र सदृश परिषवस, केम समप्पाहि देह । सौल नबल्ली वल्लरी, जालि कर किम ह ||१६||