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________________ यशोधर चीपई गौरा सारगु सारंग नाट जनकु सुहई मयन को साट । जो देसी मिल बहु भाइ, सुनत महेरे हरितु भुलाइ १७ रागु वसंतु कुवरौ करें, जो मधुमास भवर गुंजरें । लागी लात सोरठी तनी सुनि कनकंनि काम मरहनी || १७६ ।। सिरासु सुति दी रानी अंगु काम सर ह्यो, भुज पंजर तेसो तीसरी, सरद पटल ते जनी ससि रेल, निकरी एम सकुविकरि देह ॥ १७८॥ जो जान 1 जसहरु राजा बिसहरू भयो । १७७॥1 ज्यो घनते निक्सी वीजुरी | फुणि भरगाइ घरची सुद्द पाउ, हर सो जिनि जा राउ । चंपक माला लीनी बोलि, द्वार कपाट दिये तहि खोलि ।। १७९ ॥ रानी एवं वासी करे वार्ता -- रानी बात कहै बरगाइ, तो ते मेरो काजु सिराइ । गंध कला राजिनि करचो, सा त्रिनु जीव जाऊ नीकस्यो ||१०|| जी तू सखी सुजानी पापु, तो खोषहि मेरो तन तापु । निसुनत रागु वहुत दिन भए, ते सबि पाछे जुग वरिगए ।।१८१ ।। अब ले प्राणु हमारी राषि । सोई सिष भविमो सिष राइ ।। १८२ ॥ करति निहोरी तोसी भाषि, तासु चरण ले मोहि दिवाइ, ऐसौ बचनु भन्यो तब बाल, तव तन सकुवि चंपक माल । हा हा भनि गोली घर थ्रु कि, सुन्दरि बचनु भन्यो किम चूंकि ॥१८३॥ कूबड़ का वन फुटि अंगु सबु वाको गयो । मानछु काटि चोर्यो मूडु १११८४॥ पाइ शिवाई मुहू उधो, निसि दिनु रहे लीदि महु परयो । कीरा परे विधि को मूलु श्रनुदिनु माथे व्यापै सुलु ||१८५ ।। उलटि पटल अधिनु के रहे, परे कुजणे व्याधि के गढ़े । पुठो साध रहे हर हृषु, महियलि सहे नरक को दूषु ।। १६६ ।। चहु कूबरी दईको हयों, जैसी जस्पो दावा को डूडु, २०६ लाठी लाल मुठी का सहै, रानो कवनु अनि धिन कहे । माथे कौवा मारहि बोट, सो विहि रच्यो पाप को मौट २१८७॥ इसे न कबहु नीको कहै, परचो हदी रोवतु रहो। परो अलष निकु वायस दीठि करिहा सो मिलि माई पीठि ।। १८१३
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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