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________________ २०८ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि कुबड़े द्वारा संगीत प्रदर्शन मारिदत्त यह निसुनहि मान, नादु पर्यो रानी के कान । हरित माल निबसे कूवरी, गयो होश जगद् नरी ॥१६ परी सुकंठी नावे गीउ, सो निसि दिनु पहरावे जीउ । राग छत्तीस मुनै बहु भेय, अलहि मुर कामिनि सुनि नेय ।।१६२॥ प्रथम रागु भैरो परभात, सुदरि निमुनि उल्हासी गात । ललित भैरवी कोनी रागि, जनुकू बिरह वन दीनी पागि ।।१६३) रामकरी मूवरी सूठान, निसुनत भयन हई जनौकान । प्रासासै धूमिलवे भाउ, सुनि गज गामिनि भयो समाउ ।।१६४॥ गौरी परी सुहाई नाद, चन्द्रवदनि मोही सुनि सादु। करि गंधारु सुकोमल भाष, भामिनि भूलि गई भभिलाष ।।१६।। माला कोश जब निसुन्यो वाल, नियतन मयन शलाए शाल । मार जैतसिरी की छाई, जो सुभटनु मीठो रण माइ ।।१६६३ टोडि हि वरारी सो संनु, कामनि बिरह मरोस्यो अंगु । भोव परासो अवर अडान, महिलहि परयों विरह रसु कान ।।१६७।। करि कामोद ठकराई रामू, वनिताह परचो मयान पुर दागु। सुनि हि दोल नारि कर मरी, मंक्षिस दृछि अंम जनों परी ॥१६॥ करि कल्यान अबरु कानरो, गहिनि कान सुहाई षरो। केदारो कोनी अपरात, मृगलोचनो पसीजी गाठ ।। १६६॥ रामु विभास भवरु वडहंसु, कोनो जब हरि मारको फंमु । कुविज कळूह राई गुजरी, कीनी राम सिया जब हरी ।।१७०।। गगु विरावरु अरु बंगाला, सिरियहि तई कुसम की माला । दीपकु बडौरान जब करे, जासु तेज उठि दीपकु बरे ।। १७१।। कियो वषार बधु सरुमेलि, सीचि मयन बिरह की कलि । विहागरी सूहे सौ जोरि, जनु सुजान रमुलियो निचोरि ॥१७२।। मेघ रागु जब लियो नवाजि, परसै रिमिहिमि जलहरु गाजि। जवर प्रलाप गौड मलार, विनुही वादर पर फुसार ।।१७३।। फ्नासिरी मार अह जेज, राणिहि रह्यो न भावे सेज । करी मलाई मध माधई, पंच मुनि सुनत मूरछि गई ।।१७४)
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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