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________________ यशोधर चौपई २०७ जन से वग सब सौपे वाह, आपनु मोग कर घर माह । कबहू सभा बैठे माइ, निसुदिनु पिय भोगवत बिहाइ ||१४८॥ सुनि संपे निवास नुनरासि, नारि चरितुही कहमि पयासि । मारिदस सुनि देषिरू कानु, जसहर सजा सनी कहानु ।।१४६।। तहि अवसरि सुखमी दिन एक, जसहर राउ राज को टेक । सभा उठी दिनयर अंथयो, रानी तनी बुलायो गयो ।।१५०।। ता महल्यो बोले सिरु नाइ, रारिलहि तुम बिनु न सुहाइ । चाहइ बाट तुम्हारी नाह, जिम जलहर विनु वारि साह ।।१५१५॥ तिम तुम विनु रानो कलमलो. जोवनु सफ्लु देव जवचलो। निसुनि बयनु तव सरवे हस, रानी पुनि चित ताक वस ।।१२।। जेसो भवर उमाह्यो वास, युग रति रंग रवण की प्रास । चल्यो राज रानी के गेह. जेम हंसु झुसिनि के नेह ॥१५३ ॥ दोहा मशोधर एवं समृता का प्रम एक हिराबै सुख नहीं, जो न दौवराचंति । मालुप्ति मन मधुकर बसे, मधुकर न मालु ति ।।१५४१६ चौपई चंपक मला अरु शसिरेह, दोऊ सषी कनक सम देह । दोऊ अयल चतुर परबीन, जोवन साम कटि पीन ।।१५।। अमिय माहादे तनो षवासि, निसु दिनु निवसहि रानी पासि । राय तनोक रूप कस्यो प्राइ, चित्र साल ले गई बताइ ।।१५६॥ राउ पेषि रानी विहसाइ, पालिक ते उरि अकुलाई। राय विहसि कर पंची चोर, उपर्यो रानी तनो पारीर ॥१५७।। सावै टारि जना विहिगढयो, मानहु कनकु प्रगनि ते कढयो । किस करीन्या बैनीरुरो, जनुकु गरुड में नागिनि दुई ॥१५८।। विहिससि दंत पंक्ति ऊजरी, जनो धन मौ कौधो वीजुरी । चंचल नयन मरोरति अंगु, जनु कुरंगि विछोहै संगु ।। १५३।। हाव भाव बिभ्रम सबिलास, रुलु घुलति मधुकर रस वास । रम्यो सुरतु सुषु उपज्यो गात, सोयो राज भई पर रात ॥१६०॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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