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यशोधर चौपई
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को हरि हरु संकर धरणेसु, के दीसे विद्याधर भेसु । प्रतिसुरुप का एह कुमारि, सुरि मरि किन्नरि को उनहारि ॥१७॥ यह रंभा कि पुरंदरि सची, रोहिनि रूप कवन विहि रखी। सीता तारा कि मंदोदरी, को दमयंती जोवन भरी ||८|| पोमावेसर सेवन देवि, नाग कुमारि रही तपु लेवि । के प्रमंगु जन्न संक्रर उह्मी, तब हो रति विधवा पनु लो ।।६।। ताको विरहू न सक्यो सहारि, तौ वालक तपु लियो विचारि । के यह देवी मानो होइ, मैरी चलि पूजा प्रपलोइ ॥१०॥ सुप्रसन्न हुइ भाइ एह, भेषु फेरि करि निरमल देह । कुसुमावलि वहिनि मो तनो, के ग्रह तासु कोषि की जनो ।।१०१।। पुत्री पुत्र तासु हो भयो, निसुन्यो तिन चालक तप लह्यो । पेषि रूपु मन वायो मोड, राजा तनो गयो गाँस कोहु ।।१२।।
राजा द्वारा प्रान
तव हसि नरवे बावामनो, सुदर पणि वात मापनी। देसु नयह कुलु माता वापु, सुदरि काम कौन तु पापु ।। १०३।। अति सरूप तुम दीसह कौन, कारण कवन रहे गहि मौन ।
किम वैराग भाव मन भयो, थालक वैस केम तपुलयो ॥१०४।। अभयकुमार का उधर
राय वयनु सुनि अभय कुमार, भास बिमि दया गुणसार । आफुरतु वरते असमान, तह किम मेरी धम्म कहान ।।१०।। संठ पास जिम तरणि कटाय, वायस जेम छुहारि दाष । सोबत मार्ग जेम पुरानु, जिमविनु नेहहि कीचं भानु ।।१०६।। सरस कथा जिम मूरिष पास, कोनी जैसी किरपन मास । जिम पल को कीनो उपगास, जिम विनु भूषहि छरस महारु ।।१७।। वहिर प्रागै जैसो गीउ, जिम सीतज्जुर दोनो घीउ । माघ पिता बिनु जैसो भारि, जिम सिंगार पिया विनु नारि ।।१०८।। अंधहि पास निरतु जिम कियो, जिम धनु अनपायो पनदियों । ऊसर खेत कए जिम पानु, जैसे भाव भक्ति विनु दानु ॥१०६।।