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________________ १८८ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि राजा यशोधर मर कर उज्जैनी में ही मोर हग्रा और चन्द्रमती श्वान हुई । श्वान का अन्य जीवों के साथ स्नेह हो गया और बहू मन्दिर के बाहर रहने लगा । एक दिन एक शिकारी बहुत से पक्षियों को पकड़ कर वहां लाया । उनमें एक मोर बहुत ही सुन्दर था । शिकारी ने उसको मन्दिर में छोड़ दिया। यहां वह बहुत ही कौतुक दिखाने लगा। वह कभी कभी वहां नाचता रहता था । एक दिन घनघोर पावस का दिन था । मोर मन्दिर के शिखर पर चढ़ गया उसको बहां पूर्व भव का स्मरण हो प्राया। वह सब लोगों को जान गया। उसने अपनी चित्रशालाएँ देखी । अपनी नीली गर्दन को देखकर दुःख हुआ तो अपने आप अपनी चोंय से घाव करके मर गया । चन्द्रमती मर कर कुत्ता हुई जिसको शिकारी ने महाराज को भेंट में दिया । वह कुत्ता जो माता का जीव था, उसने मोर की गर्दन पकड़ कर मार डाला : उस समय राजा जो चौपड़ खेल रहा था, उसे छुड़ाने के लिए दौड़ा लेकिन कुत्ते ने उसे नहीं छोड़ा। राजा ने कुत को मार डाला । इस प्रकार दोनों ने साथ ही प्राए त्यागे । श्वान मर कर फिर मोर हो गया और बह कुत्ता मर कर कृष्ण सर्प हया । मयूर एवं सपं में स्वाभाविक बर होता है इसलिए उसने देखते ही सपं का काम तमाम कर दिया । इनके पश्चात् भोर मर कर बड़ी मछली हुमा तथा उस सर्प ने मगर की योनि प्राप्त की। उज्जैनी में एक दिन एक सुन्दरी स्नान के लिए प्रायी, जब वह स्नान में तल्लीन यी उस मगर ने उसे निगल लिया । तत्काल घीपर को बुलाया गया और उसने जाल डालकर उस मगर को पकड़ लिया तथा उसे लाठियों, घूसों एवं लातों से मार दिया। उसके बाद वह मर कर बकरी हो गयी । कुछ दिनों बाद मछली भी पकड़ में भा गयी। मरने के बाद वह भी पुन: बकरा बन गयो । एक दिन जब बकग एवं बकरी स्नेहासिक्त थे तब उनके मालिक द्वारा वह बकरा लादियों से मार दिया गया। लेकिन उसने पुन: बकरे के रूप में जन्म लिया । कुछ समय बाद बकरी एक टांग काट दी गयी और धीरे-धीरे वह मृत्यु को प्राप्त हुई। फिर वह मर कर भैसा हो गयी। और उसके पश्चात् दोनों का जीव मृत्यु को प्राप्त कर मुर्गा मुर्गी के रूप में पैदा हुआ। एक दिन राजा को मुर्गा मुर्गी की लड़ाई देखने की इच्छा हुई लेकिन वह उनकी सुन्दरता से इतना प्रभावित हुना कि उसने उन्हें बन में छोड़ देने का मादेश दिया। वहीं पर जैन मुनि मुदत्त का आगमन हुमा । रानी ने उनसे धर्म कथा का श्रयण किया । सुबत्ताचार्य ने अहिंसा को जीवन में उतारने पर बल दिया। साथ ही में उसने यशोधर एवं चन्द्रमती की कथा कही जिन्होंने प्राटे का मुर्ण मारने से सात जन्मों तक अनेक कष्ट सहे । राजा यशोमति ने एक दिन दोनों मुर्गा मुर्गी को मार डाला । लेकिन उन दोनों का जीव ही रानी के गर्भ में कुमार एवं कुमारी के रूप में अवतरित हुए । राजकुमार का नाम अभयरुचि
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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