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________________ गारवदास १८७ राजा ने ऐसे किसी भी कार्य को करने का प्रतिवाद किया मोर हिंसा से कभी शान्ति नहीं मिल सकती, ऐसा अपना मन्तव्य प्रकट किया। जीव घात ओ उपज धम्म, तो को अवरु पाप को कम्मु । जे ते लख चौरासी खाणि, ते सन कुटमु माइ तू जागि । रानी चन्द्रमती के विशेष आग्रह पर राजा यशोधर देवी के मन्दिर में गया और यह भाव रखते हुए कि वह मानों जीवित कुकुट है, पाटे के कुकुट की रचना करवाकर उसो का देवी के प्रागे बलिदान कर दिया। इससे राजा को जीव हिसा का दोष तो लग ही गया। देवी के मन्दिर में से राजा अपने महल में आया और प्रपना सम्पूर्ण राजपाट अपने लड़के को देकर स्वयं वन में तपस्या करने के लिए जाने का निश्चय किया । राजा मारतस ने जब यह कथा सुनी तो उसने भी फर्मगति की विचित्रता पर पाश्चर्य प्रकट किया। जव रानी अमृता ने यशोधर के तप लेने की बात सुनी तो वह भविष्य की माशंका के भय से परने लगी। इसलिए वह भी राजा के पास गयी और उसी के साथ दीक्षा लेने की बात कही । राजा ने पहले तो उसके वचनों पर विश्वास ही नहीं किया लेकिन रानी राजा को मनाने में सफल हो गयी और उसने साथ-साय तप लेने की स्वीकृति प्रदान कर दी। बालम बिनु किम भामिनी, किम भामिनी बिनु गेहु । दान बिहीनी जेम घरु, सील बिहीनो देह ।।२८८॥ राजा की स्वीकृति पाकर रानी वापिस अपने महल में चली गई । वहां वह अपने भोजनशाला में गयी। उसने बहुत से विषयुक्त लहु बनाये और उनमें से कुछ लड्. लेकर वह वन में गयी जहां राजा यशोधर एवं चन्द्रमती बैठे हुए थे । अमृता ने दोनों को विषयुक्त लड्डू खिला दिये । लहु, खाने के बाद पहिले चन्द्रमती मर गयी प्रौर थोड़ी देर बाद राजा भी वैद्य-वैध करता हुमा तड़फने लगा। रानी प्रमृता को इससे बहुत डर लगा और उसने केश मुडाकर साध्वी का भेष धारण कर लिया और अपने पति को घसीट कर मार दिया। फिर वह जोर-जोर से रोने लगी। रानी का रोना सुनकर उसका लड़का यहां माया और पिता को मरा हुमा देखकर मुंह फाड़कर चिल्लाने लगा, साथ ही में दूसरे लोग भी रोने लगे तथा रानी को सास्वना देने लगे। उन्होंने संसार का विविध स्वरूप बताया और सन्तोष धारण करने की प्रार्थना की। सब लोग राजा यशोधर एवं चन्द्रमती को प्रमशान ले गये पौर उनका दाह संस्कार किया। यहीं से यशोधर एवं रानी चन्द्रमती के भवों का वर्णन प्रारम्भ होता है।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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