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________________ १५६ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि मासक्त हो गयी और उसके बिना अपना जीवन व्यर्थ समझने लगो | प्रधं रात्रि को पय राजा यशोधर उसके पास सो रहा था तो वह उसको सोता हपा छोड़कर अपनी एक सेविका के साथ उस क बड़े के पास चल दी। कधि ने रानी अमृता एवं दासी को बहुत ही सुन्दर वार्ता प्रस्तुत की है साथ में संगीत विद्या का भी राग रागनियों के साथ अच्छा वर्णन किया है। जाती हुई रानी के नुपुर की आवाज सुनकर राजा को चेत हो गया। जब उसने रानी को प्रचं रात्रि में कहीं जाते हुए देखा तो एक बार तो उसे अपनी प्रांखों पर विश्वास नहीं हुमा। लेकिन उसे पलंग पर नहीं पाकर वह भी हाथ में तलवार लेकर रानी के पीछे-पीछे दवे पांव से चल दिया। रानी ने कुबड़े को जाकर जगाया पौर उसके चरणों को छूना । कुबड़े ने उसे गारी निकाली फिर भी रानी एवं उसकी दासी हंसती रही और उसकी मनुहार करती रही। रानी ने उस कुबहे के गले लग कर कहा कि वह उसके बिना नहीं रह सकती। लेकिन वे दोनों ऐसे लगे जमे हंस के साथ कोवा। रानी ने कबड़े के पांव दबाये तथा सभी तरह से उसकी सेवा की। यह देखकर राजा से नहीं रहा गया और उसने तलवार निकाल ली । लेकिन उसने विचार किया कि स्त्रियों पर तलवार घलाना कायरत। कहलाती है तथा कुबड़ा जो दिन भर झूठन वाकर पेट भरता रहता है उसे मारने से तो उल्टा उसे अपयश ही हाथ लगेगा । यह सोचकर राजा ने तलवार वापिस रख ली। वहां से राजा यशोधर अपने हृदय को बच के समान करके पालकी में बैठ कर चित्रशाला चला गया। रानी तो काम विह्वला थी इमलिये बड़े के साथ काम क्रीड़ा करके वापिस महलों में प्रा गयी। प्रब वह राजा को जहरीली नागिन के समान लगने लगी। जिसके साथ क्रीडा करने में राजा मानन्द की अनुमति करता था वह पब विषवेलि लगने लगी। राजा को रानी की लीला देखकर जगत् से उदासीनता हो गयी । प्राप्तःकाल हुमा। उसकी माता चन्द्रमती भगवान की पूजा करके हाथ में मासिका लेकर राजा के पाम आयो । राजा द्वारा माता के चरण हने पर उसने आशीर्वाद दिया। राजा ने अपनी माता से कहा कि उसने पाज रात्रि को जैसा सपना देखा है उससे लगता है उसके राज्य का शीघ्र विनाश होने वाला है। इसलिए उसके बराम्य पारण करने का भाव है। लेकिन माता ने कहा कि तपस्वी बनना कायरता है । जो राजा स्वप्न से ही डरता है वह युद्ध भूमि में कैसे जा सकता है । इसलिए राजकाज करते हुए ही देवी देवतामों को बलि चढ़ा कर उनको प्रसन्न कर लेना चाहिए जिससे सारे विघ्न दूर हो सकें। नगर के बाहर कंधारण देवी है उसको बलि चढ़ाने से सब विघ्न दूर हो सकते हैं । लेकिन
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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