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________________ नेमिश्वर को उरगानो १६६ कौन पाप हम कीन माइ, खिन सिन मुरछि भौ परिजाइ । पिन पिन उठि जोबइ चढ़ नास, परीय थियो । मा को मनु मेरी धीरव, कोनु वहोरै नेमि कुवारु । कोयहु जाइ कर उपगारु, नेमि कुचर जिन बंदि हौं ।।१७।। राजुल का अपने पिता के पास जाना— तव उठि कुवरि पिता पहि जाहि, वात करत वे षरीय लजाइ । नेमि सुने मिरि पो गये, कहउ पिता तुम जानउ भेउ । फोनु यहोरे जावो देव, गबहु भरि चिरु न संहासे । सुनत वात सो मुरही जाइ, व्याह छांडि संगम लिया । उनि वैराग कियो किहि काज, छांडिज छत्र संघानु राजु । नेमि कुवर जिन बंदि हो ।।१।। उग्रसेन का उत्तर उनमेनि यो कहि विचार, यह सब जाने का मुरारि । जिन ए जी विराईयो, देखि तिन्हहि मन भी बरामी । वोछउ कुवरि तुम्हारो भाग, कन्हर कुरम कमाइयो । लेन गये हम करि मनोहारि, जादौ सयल रहे पचिहार । दूसरे राजकुमार के साथ विवाह का प्रस्ताव दे दिड संजमु ले रहे, अवहि कवरि हम करिहै काजु । ब्याह तुम्हारा होइ है माजु, वन पोलो ले भाइ हैं। अति सरूप सो राजकुवार, चौदह विद्या गुनहनि धानु । नेमि कुवर जिन वंदि हौं ।।१६।। राजुल का उत्तर-- यह सुनि राजुल उठी रिसाइ, ऐसौ बोलु कहै कतराइ । व्याछ जनम पोरै करो, एही जनम मो नेमि भरतारु । उग्रसेनि सौ सयु संसारु, चढि गिरिनयरिहि जासीउ । उहि साथ ही संजमु धरी, सहक परीसहि सेवा करी । कर्म कुचित सव टारिहै, प्रह नित र पिया के साथ । नेमि कुघर जिन वंदि हौं ।।२।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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