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________________ १३८ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि भोतन साठी ज्यु तप विनही अवगुन मुझ सु # देखिइ केली तर वर्ष, बालंभ उलटा हु रह्या, परउप नयन कुबइ मद चारि । कस कर रह्या भरतार ||३६|| इस विद के कारणइ धन बहु दारू कीय चित्त का चेतन द्वाहत्या, गया पीपरा लेय जीव ॥४१॥ विरह लगाई माता योवन फाग रिति, परम पीयारा दूरि । रलीन पूरी जीयकी, मरउ विसूरि विसूरि ॥४२॥ सुनारिन की व्यथा - छारी खाद ||४०|| हीरा भीतर र रहु, कम वर्गेश सोस । बहरी हुआ बालहा, विहरद किसका दोस ||४३|| मोस ब्युरा विरह का कला कलालन नारि । दुख सरीर मह, सो तु धाखि सुनारि ॥ ४४ ॥ इहु होया अंगीट्टी मूसि जिय, कोयला कीया देह का टंका कलिया दुख का मासा मांसा न भूकीया, कहर सुनारी पंचमी, अंग अपना दाह हू त बुडी विरह मद, पाउ नाही पाहू ||४५॥ मदन सुतार मभंग । मिल्या सवेइ सुहाग १४६ || रेती न देइ बीर । सोध्या सब सरीर ॥४७॥ विहरह रूप बुराइया, सूना हुभ्रा मुझ जीव । किस हइ पुकारू जाइ कह, अब घरि नाहीं पीव ॥४८॥ तन तोले कंटज घरी देखी किस किस जाइ । 1. विरा कुंड सुनार ज्यूड, घडी फिराय पिराइ ॥ ४६ ॥ खोटी वेदन विरह को, मेरो हीयरो माहि । निसि दिन काथा कलमलद, नो सुख धूपनि छह ॥५०॥१ छील वयरी विरह की घडी न पाया सुख हम पंच तुम्हें सउ का अपना अपना दुख ||५१३ 1
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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