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पंच सहेली गीत
कहि करि पंचउ पखीयो, अपने दुख का छह 1 बाहुरि यइ दूजी मिली, जबह धडूक्या मेह ।।५।। मुई नीली धन पूवरि, गनिहि चमकी बीज। बहुत सखी के झूड मई, खेलन प्राइ तीज ।।५।। विहसी गावइ हि रहिस, कीया सह संगार । तब उन पंघ सहेलीयां, पूछी दूजी वार ॥५४॥
छोहल का पांचों स्त्रियों से पुनर्मिलन
मई तुम्ह प्रामन दूमनी, देखी थी उतबार । प्रब हु देख्नु विहसती, मोस कहउ विचार ||५५11 छीहल हम तर तुम्ह स', कहती हइ सत्तभाइ ! सांई प्राया रहससु, ए दिन सुख माहि जाइ ॥५६।।। गया वसंत वियोग मइ, पर धुप काला मास । पावस रिति पीय मावीया, पूगी मन की प्रास ।।५७।। मालनि का मुख फूल ज्यउं, बढ़त विगास करेइ । प्रेम सहित गुजार करि, पीय मधुकर सलेइ ।।५८।। चोली खोल तंबोलनी, काठ्या मात्र अपार । रंग कीया बहु प्रीयसु, नयन मिलाई सार १५६।। छीपनि कर वधाईयां, जउ सब प्राए दिनु । प्रति रंगिराती प्रीयसु, ज्यउ कापड मजीठ ।।६।। योवन बाला लटकती, रसि कसि भरी कलालि । हसि हसि लागइ प्रीय गलि, करि करि बहुतो प्रालि ।।६१।। मालनि तिलक दीपाईया, कीया सिंगार अनूप । पाया पीय सुनारि का, चढ्या पवगणा रूप ॥६२।। पी माया सुख संपज्या, पूगी सबह जगोस । तब वह पंचइ कामिनी, लागी दयन असीस ।।१३।। हुउ वारी तेरे बोलफु', जहि वरणवी सुदाइ । छीहल हम जग माहि रही, रह्या हमारा नाव ॥६४।।