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________________ छीहल जो सूरदास के ब्रजभाषा का परिवर्ती रूप है लेकिन बावनी में व्रज का हो नहीं अपभ्रंश एवं राजस्थानी का भी परिस्कृत रूप देखा जा सकता है । रचना काल श्रीहन क गल गज्जि करि, जो जल उहरिदेइ धन । चातक नौर ते परि पिये, ना तो पियासो तर्ज तन ||३४|| बावनी की रचना संवत् १५८४ I सर कार्तिक सुदी प्रष्टमी गुरुवार के दिन सम्पन्न हुई थी । कवि ने अपने श्री गुरु का नाम लेकर रचना प्रारम्भ की थी मोर की कृपा से उसकी यह रचना सानन्द समाप्त हुई थी । चंद्ररासी अगला सड़ जु पनरह् समच्छर । सुकुल पष्मास कार्ति गुरुस ! हृदय उपनी बुद्धि नाम श्री गुरु को लीन्हो | सारद व पसाद कवित सपूरण कीन्हो । कवि का परिचय पुत्र था । कहलाता था बाबनी के अन्तिम पद्य में कवि ने अपना परिचय दिया है। वह नाथू का अग्रवाल जैन जाति में उत्पन्न हुआ था तथा उसका वंश नाहिंग । ११३ नासिसि नाथू सुतनु अगरवाल कुल प्रगट रहि । बावन्नी वसुषा विस्तरी, कवि कंकरण छीहरुल कवि ||५३ ।। बावनी अपने समय में लोकप्रिय कृति रही है तथा उसका संग्रह गुटकों में मिलता है जिससे पता चलता है कि पाठक इसे चाद से पढ़ा करते थे। अब तक राजस्थान के जैन ग्रंथागारों में बावनी की निम्न पाण्डुलिपियो उपलब्ध हो चुकी हैं१. शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर गुटका संख्या १४० लेखन काल सं० १७१६ (इसमें २२ से ५३ तक के पद्य है) लूणकरणजी पांडे, जयपुर २. शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर होलियान ३. भट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर गुटका संख्या ३५ (इसमें ५३ पद्म है) ४. उक्त कृतियों के अतिरिक्त, अनूप संस्कृत लायब्रेरी बीकानेर तथा अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में भी बावनियों की पाण्डुलिपियां मिलती हैं ।' १. सूर पूर्व ब्रज भाषा और उसका साहित्य ० ३७७ ॥ गुटका संख्या १२५ (इसमें ५० पद्म हैं।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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