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________________ १३२ कविवर बूजराज एवं उनके समकालीन कवि यौरो थौरो माहि, समय कछु मुकृति कीजइ । विनय सहित करि हित्त, वित्त सारं दिन दीजए । जब लगि सांस सरीर मुट विल सहु निज हत्यहि । मुवा पर्छ लंपटी, लच्छी लग्गै नहिं सत्यहि । छीहल कहद वीसल नृपति संचि कोडि उगणीस दख्ख । लाहौ न लियो भोगवि, करि अंतकाल गौ छोडि सत्र ।।३६ मनुष्य जीवन भर भविष्य की कल्पना करता रहता है और मृत्यु की ओर जरा भी सचेत नहीं रहता लेकिन जब मृत्यु पाती है तो उसकी सब आशाएँ धरी की धरी रह जाती हैं और वह कुछ भी नहीं कर सकता। जिस प्रकार मधुकर कमल पुष्प में बन्द होने के पश्चात् सुखद प्रातःकाल की कल्पना करता है लेकिन उसे यह पता नहीं कि उसके पूर्व ही कोई हाथी माकर उसकी जीवन लीला समाप्त कर सकता है इसलिए भविष्य की प्राशामों की कल्पना छोड़कर वर्तमान में अच्छे कार्य कर लेना चाहिए भ्रमर इक्क निसि भ्रम, परी पंकज के संपुटि । मन महि मंद प्रास, रयरिग खिण मांहि जाइ बदि । करि हैं जलज विकास, सूर परभाति उदय जब । मधुकर मन चितव, मुक्त हैव हैं बन्धन तब । छीहल द्विरद ताही समय, सर संपत्तउ दस बसि । अलि कमल पत्र पुरिण सहित, निमिय माहि सो गयो ग्रसि ।।४३।। इस प्रकार पूरी बावनी सुभाषितों एवं उपदेशात्मक पद्यों से भरी पड़ी है। उसका प्रत्येक पद्य स्मरणीय है तथा मानव को विपत्ति से बना कर सुकृत की ओर लगाने वाला है। सभी सुभाषित सम्प्रदाय भावनाओं से दूर फिन्तु मानवता तथा विश्व मेवा का पाठ पढ़ाने वाले हैं। मानब को राग, द्वेष, काम, क्रोध, मान एवं माया के चक्कर से बचाने वाले हैं। यही नहीं जगत का वास्तविक स्वरूप को भी प्रस्तुत करने वाले हैं। कवि ने इन पद्यो में अधिक से अधिक भावों को भरने का प्रयास किया है। इसलिए कवि को प्रस्तुत बावनी हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा की सुन्दरतम कृतियों में से है। भाषा भाषा की दृष्टि से बावनी राजस्थानी भाषा की कृति है। इसमें अपम्रश शब्दों की जो भरमार है वे इसके राजस्थानी रूप को ही व्यक्त करने वाले हैं । डा शिवप्रसाद सिंह ने बावनी को अजभाषा के विकास की कड़ी के रूप में माना है
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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