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________________ छोहल विषय प्रतिपादन प्रारम्भ में पांच इन्द्रियों के विषयों में यह जीव किस प्रकार उलझा रहता है और अपने मन को प्रस्थिर पर लेता है। हाथो स्पर्शन इन्द्री के वशीभूत होकर, हरिण श्रवण इन्द्री के कारण अपनी जान गंवा देता है। यही नहीं रसना इन्द्री के कारण मछलियर्या जाल में जाती हैं. भावनांग भी साल में फंसकर अपने जीवन का अन्त कर लेते हैं माद श्रवण धावन्त तजइ मृग प्राण ततष्षिण । इन्द्री परस गयन्द बास अलि मरह वियषण । रसना स्वाद विलग्गि मीन बझा देखन्ता । लोयण लुबुध पतंग पडह पावक पेषन्ता । मृग मीन भंवर कुजर पतंग, ए सब विणासह इक्क रसि । छोहल कह रे लोइया, इन्दी राखउ प्रष्प वन्ति ।।२।। कबि ने. समस्त जगत को स्वार्यमय बतलाया है। मनुष्य जगत् में आता है और कुछ जीवन के पश्चात् वापिस चला जाता है। यह सब उसी तरह है जैसे फलों से लदे वृक्ष पर पक्षी प्राकर बैठ जाते हैं और फल समाप्त होने तथा पत्ते भड़ने पर सब उड़ जाते हैं । उसी तरह मनुष्य जगत् से स्वार्थ के लिए प्रथवा धन के लिए मित्रता बांयसा है और वे मिल जाने के पश्चात उसे वह मुला बैठता है। छाया तरुवर पिष्धि प्राइ, वह बस विहंगम । जब लगि फल सम्पन्न रहे, तब लगि इक संगम । बिहवसि परि अवघ्य, पत्त फल झरै निरन्तर । खिरण इक तथ्य न रहा, र्जाहि जडि दूर दिसतर । छोहल कहे दुम पंखि जिम महि मित्र तणु दव लगि । पर फज्ज न कोक वल्ल हो, अप्प सुधारष सयल जगि ।।२६|| मनुष्य को थोड़े-थोड़े ही सही लेकिन कुछ अच्छे कार्य करने चाहिए । दूसरों के हित के लिए विनयपूर्वक घन दिन भर देते रहना चाहिए अर्थात् भलाई एवं दान के लिए कोई समय निश्चित नहीं होता। कवि कहता है कि जब तक शरीर में स्वास है तब तक अपने ही हाथों से अपनी सम्पत्ति का उपयोग कर लेना चाहिए क्योंकि मरने के पश्चात् वह उसके लिए वेकार है। कवि ने बीसल राजा को उपमा यी है जो १९ करोड़ का धन जोड़ कर छोड़ गया और इसका जीवन पर्यन्त भोग और दान किसी में भी उपयोग नहीं किया।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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