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________________ १३० कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि जैन विद्वानों ने बावनी संज्ञक काव्य लिखने में भारम्भ से ही रुचि दिखाई है। ये बाधनियां किसी एक विषय पर आधारित न होकर विषिष विषयों का वर्णन करती हैं। बावनी लिखने वाले कवियों में डूगरसी, बनारसीयास, जिनहर्ष, दयासागर, ब्र० मारणक, मतिशेखर, हेमराज आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। अन कवि न तो अपने पौराणिक कथानकों में ही बंधे रहे और न उन्होंने सामन्ती के चित्रण में जन सामान्य को मुलाया। जैन काव्य में विराग और कष्ट सहिष्णता पर बहत बल दिया गया है । यह भी सत्य है कि इस प्रकार सदाचरण के नीरस उपदेश काव्य को उचित महत्त्व नहीं देते किन्तु यह केवल एक पक्ष है। अपने अध्यात्म जीवन को महत्त्व देते हुए तथा पारलौकिक सुखों के लिए प्रति सचेष्टा दिखाते हुए भी बैन कवि उन लोगों को नहीं मुला सका जिनके बीच वह जन्म लेता है । उसके मन में अपने पास-पास के लोगों के सुखी जीवन के लिए भपूर्व सदिच्छा भरी हुई है । वह सृष्टि की सारी सम्पत्ति जनता के द्वार पर जुदा देना चाहता है।' बावनी का एक-एक छप्पय नीति के रत्न है जो अपनी प्रभा से उभासित प्रौर प्रकाशित हैं | कवि ने बड़ी सम्यता से मर्यादा, नीति और न्याय के पक्ष का समर्थन करते हुए पारियों और महाशिमों की हम भी है। अगल का स्वभाव प्रस्तुत किया है तथा उसमें मानव को अच्छे कार्य करने की प्रेरणा दी है। प्रस्तुत नावनी का हिन्दी की बावनियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य शुक्ल ने यद्यपि इसमें ५२ दोहे होना लिखा है पर इसमें ५३ छप्पय छन्द हैं जो मोम से प्रारम्भ होकर नगराक्षर क्रम से निबद्ध हैं। कम निर्वाह के लिये ओ, को, क्ष, वणं छोड़ दिये गये हैं तथा ड, एवं न के स्थान पर न का तथा ऋ, ऋ, ल, ल, य, व, श, के स्थान पर क्रमशः रि, री, लि, ली, ज, भो, म, का प्रयोग किया गया है । कई अन्य कवियों द्वारा रचित बानियों में भी वर्णमाला का यह परिवर्तित रूप पछ क्रम के लिये प्रयुक्त हुन्मा है। बावनी के मारम्भिक पांच पदों में मादि अक्षरों के द्वारा ॐ नमः सिद्ध' बनता है जो कवि के जन होने का द्योतक है। बावनी का प्रथम पद्य मंगलाचरण के रूप में तथा अन्तिम पद्य में कवि ने बावनी का रचना काल एवं स्वयं का परिचय दिया है। इसके शेष छन्द नीति एवं अपदेश परक हैं । कवि ने बावनी में विषय का प्रथवा नोति एवं उपदेशों का कोई क्रम नहीं रखा है किन्तु जैसा भी उसे रुविकर प्रतीत हुमा उसी का वर्णन कर दिया । १. सूर पूर्व ब्रज भाषा और साहित्य-पृ० २८१ । २. मय भारती वर्ष १५ अंक-२ पृ०६ ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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