________________
कविवर बूचराज
भवनकीति गीत
प्रावि बद्धार सुणहु सहेली, यछु मनु पदुमनु विधसइ जिमकलीए । गोदि पनंद नित कोटिहि सारिहि, मुह गुरु सुह गुरु वेदहि सुकरि रलीए ।। करि रली बन्दह सखी सूह गुरु लवधि गोहम सम सरै । जसू देखि दरसरणु टलहि भवदुख, होइ नित नवनिधि घर ।। कपूर चन्दन अगर केसरि प्राणि भाचन भावए । श्रीभुवनकीति चरण प्रणमोहू, सखी माज बद्धावहो ॥१॥ तेरह विधि चारित प्रतिपालइ, दिनकर दिनकर जिम तपि सोहए । सर्वशि भासिउ धर्म सुगाबै वाणी हो वाणी भव मनु मोहइए । मोहन्ति पाणी सदा भवि मुनु अन्य प्रामम भासए । षट् द्रम्य प्रक पञ्चास्तिकाया सप्ततत्व पयासए ।। बावीस परिसह सहइ अंगिह गरुष मति नित गुणनिधो । श्रीभुवनकीति चरण पण मि सु पारितु तनु तेरह विधो ।।स।
मूलगुणाहं पठाइसइ धारइए मोहए मोहु महाभडु ताडियो ए । रतिपति तिणु दंतिहि महिउ पुणु कोवहुए कोवडुकरि तिहि रालीयो ए ।। रालियो जिमि कोवंड करिहि बनउ करि इम बोलाइ । गुर सियलि मेरह जिउ पजंगमु पक्षण भइ क्रिम डोलए । जो पंच विषय विरतु चित्तिहि किया खिउ कम्मह तरण । श्रीमुवनकीति चरण प्रणमइ घरइ अठाइस मूलगुणु ॥३॥ दस लाक्षरण धर्म निजु धारि कु संजमु भूसरणु जिसु वनिए । सत्रु मित्रु जो सम किरि देखई गुरमिरगंधु महामनीए ॥ निरगंथु गुरु मद अ परिहरि सवय जिय प्रतिपालए । मिथ्यात तम निण दिन म जैणधर्म उप्रास्लए ।। तेरेनवतहं प्रखल चित्तहं कियउ सकयो जम्मु । श्रीमुधनकीर्ति चरण पणमउ धरइ दशलक्षिण धम् ।।४।।