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टंडारणा गीत
पाइ जरा जब गढ में पैसे जोवन करई पाणावे । मौसर गुण तूटहि जिक धाराष घण पीई पछिताणावे ॥ करि उद्दिमु भप्पणु वलु मडै, भोगहु प्रमर बिमाणावे । पाथव दि मही निज संवरु, कारहु करम पुराणावे ।। पाखिहि मासि नीरस भोया, ले करि सेब जाणावे । समकति प्रोहणि दस विधि पूरहुँ निम्मन धम्म किराणावे ।। सुद्ध सरूप सहजि लिव निशिदिन, झावउ अंतरि झाणावे । जंपति 'दूचा' जिम तुम्हि पावहु, वेछित सुख निखाणावे ।। सुख निर्वाण निर्भय कारणं, सिव रमणी मस्तकि तिलयं । प्रात्मप्रतिबुद्ध जमि कषि सुद्ध, बत्तीसरे गुण पद निलयं ।।
11 इति टडाणा गीत समाप्सा ।।
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१. गुटका वि० जन मन्दिर नागवी की।