SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बूचराज हंडारणा गीत रंशाणा दंगणा मेरे जीवडा, टंडाणा टंडाणाये । इहि संसारे दुख मंगरे, क्या गुण देखि लुभाणावे ।। जिनि उगि ठनिया प्रनादि कालहि, भी तिन्ह जोगु परयाणावे । पडचा कुमारगि मिथ्या सेवहि, मेटहि जिणि की प्राणावें ।। पाप करहि पर जीव सतारी, होसी मरका ठाणावे वाग। केती बारह रंकु कहाया, कित्ती बारह राणावे ॥ समइ समइ सुह प्रसुह जो बांध, लागो होइ सतारणावे । बच्च लेप वह खोली नाही, लवहि प्रवर प्रयाणावे ॥ ए वह भवि वि बहुति भीतरि, बांध्या करमह धाणावे । तेरह विधि से पालि न सकिया, चारितु परि कृपाणावे ।। केवल भाषित धरम अनुपमु, सो तुम चिति न सुहाणावे । ले संजम ते जीति न सक्या, सीखे मनमथ वाणावे ।। राग दोष दोइ पइरी तेरै, देहि न सियपुरि जाणावे | माठ महामद गज जिम गरजे, तिन मिलि क्रिया निताणाये ।। मात पिता सुत सजन सरीरी, यह सबु लोगि विडाणावे । चयरिण पंखि जिम तरवर वास, दस दिस दिवसि उमणावे ।। जम्मण मरण सहे दुख भनता, तो नहुवउ सयाणाये । केते पुरिस निपुसिक लिमिहि, के ते नाम पराणाये ।। नट जिम भेष कीये वहतेरे, तिन्हको कहद प्रवाणावे । प्रापरणु पर कारणि करि मारंभु, तू पीडहि षट प्राणावे ।। मोह मान माया लोभ संगहि, नितिहि रहै भरमाणावे । चेतनु राव निबल तइ कीयो, मनु मंत्री सिउ लागावे ।। विषग्रह स्वारथ पर जिय वचहि, करि करि बुधि विनाणाधे । छोडि समाधि महारस (मानुपम, मधुर बिंदु लपटाणावे ।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy