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________________ नेमिनाथ बसंतु नव नेवज रस गोरस पुज्जि जे त्रिभुवण माही । जनम जीवन फलु लाभइ रे निति सन होइ उछाहो ।। भारत्यो प्रभु कीजइ विमल कपूर प्रजाले । प्रभर मुकति मगु दोसई मोह महातमु जाले । कुस्नागुरु घुप धूपिजइ जिन तनु सहजि सुधासो । अमर रमणि रंगि रमिजइ पाइजह शिवपुर वासो । नव नारिंग कबली फल पुज्जि ज त्रिभुवरण देवो । जनम जीवन फलु लाभइ होइ संसारह छेवो । काचीय कलीन विहसइ घोरा वाज । भूलउ भवरा रुम झुण चंचल छपल सहाउ । भमरु कमल रस रसियउ केतुकि कुसुम लुभाइ । वंधण वेदु मूरिख सहइ राह बंध न सुहाद । साजन छयल तिस लहि जाहि नित नवल वसंतु । सवम नवल परि विहसइ जाह नित रमणि हसन्तु । रामाइण रंगि रातउ भार परहि तु पमाणु । परमाहृषि पंथि भूलउ किउ पावहि गुण ठासो । अशली डाल डलामल पण खाधा फल खाये । बाम्हवि घरवण सूबडउ सखीपण बंधणा जाप । मूलसंघ मुखमंडण पदम नन्ति सुपसाह । बील्ह वसंतु जि गावइ से सुषि रलीय कराह ।। ।। इति नेमिनाय बसंतु समाप्तो ।। B
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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