________________
चेतन पुद्गल धमाल
है
चेतन काइ तड़प्फडहि, कूष्ठा करहि पसारु । जितु फलि सकहि न पहूचि करि, तिसुकी हवस निवारो।। चेयण सुगु ।।१२२ । काया किसियन प्रापणी, देखह चिति अवलोह। कूकरि चंकी पूछडी, सा किम सीधी होइ ॥ चेयक गुण ॥१२३।। भोगहि भोग जि इंदपरि, भूपति सेवहि वारि । काया भीतरि प्राइकरि, सुख पाया संसारि ।। चेयण सुणु० ॥१२४॥ यह सुजु घिध पविणासस, दिनु दिनु छीजतु जाए। जो जल सिखरहु खहरें, सो किउ सिम्बरि पाए ।। चेया गुण. १५१२५।। यस संजमु मसिनर प्रणी, तिसु ऊपरि पगु देहि । रे जीय मूह न जाणड़ी, इव कह फिर सी झेइ ।। चेयगा सण ।।१२६५ भसिवर लार्ग तिन्हु कहु, जे विषया सुखि रत्त । साधि संजमु हुन पान में, ते सुर लोइ पहतो ॥ चेयण गुण ॥१२७।। इसु काया परसादते, चेतन सोभा होई। पंचह महि वाडिमा घट, भला कहै सवु कोइ ।। चेयण मुणु० ॥१२८|| भला कहा जगु मुस, भगलु कर नट जउ । जड़ के संगिहि दी8. मह, घणा बूडता एव ।। त्रेयण गुण • 1|१२६।। बहुता जूनि भमंति यह, लही मुनिष की रेह । तिस सिउ मैसी पिरति करु, जिउ सिल ऊपरि रेह ।। चेयण सुण० ।।१३०॥ सिलभि विसै रेहरािउ, देहमि खिरण महि जाइ । तिसु सिख निश्चल पिरति करु, जोले दुख छोडाइ ।। चैयण गुण ।।१३१॥ दुक्खहु मूलिन छूटइ, पडिया आरति झाणि । काया खोवा पापणी, किउ पहुचे निरवाणि ।। चेयष सुणु ॥१३२।। उद्दिमु साहसु धीरु वलु, बुद्धि पराकमु जाणि ।। ए छह जिनि मनि दिदु किया, ते पहुंचा निरवारिण ।।१३३॥ चेयन गुणवते जडसिउ संगु न कीजे । जड गलइरु पूरै, तिव तिव पूछ सही हैं। जह संगु दुहेला विरू भमिया संसारो ॥