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________________ ८ कविवर बूचराज रे चेतन तू ताबला. जा जड तुम्ह संगि ब्रोड् ! जे मद् भाजनि गूजरी, खीर कहै सवु कोए ।। चेयण सुशुः ॥१०८।। चेतन हुँ नित ज्ञान मह. यहु नित अशुचि सरीर । घालि गवाया कुंभ महि, गंगा केरा नीरु ।। चेषण गुणः ॥१०॥ उतु अमि न्यानु प्रराधिया, कीया वरतु प्रभंगु । तिसु पुनिहि ले पाईवा, इसु काया सिउ संगु ।। चेयरम सुणु० ११०।। सा जड़ मूढ न सोचिय, जिमु फलु फूलु न पानु । सो सोना क्या फूफिय, जोरु कटावै कानु ।। पेयण गुणा ।।१११॥ जोवन्नु लछि सरीरु सुख, अरु कुलवंती नारि । सुरगु इच्छाई पाईया, जिन्ह के एसो चारो ॥ चेयण सुगु० ॥११२।। तू सात धातु नींदहि सदा, चितमहि करहि बिसेषु । तिन्ह साथि हिग नित मरी, रे जिय संभलि देखु ।। चेयण गुण ॥११३।। आहार मैथुना नींद जड, ए चारि जीय साथि। तेसहि सलाका आदि दे, इन्ह विपु कोइ न आथि ।। चेयण सुरण ॥११४।। ए चारिउ संगिताम लगु, जा जीउ करमह माहि । छोडि करम जीउ मोखि गया, इनहु नेग जाहि ।। शेयण गुण ॥११५। कालु पंच मारुद, यहु, चित्त न किसही ठाइ । इंदी सुतु न मोखु हुइ, दोनउ खोहि काए । चेपण सुगा ।।११६।। कालु पंचमा क्या कर, जिन्ह समकतु आधार । जदि कदि बोह पुन्यात्मा, निश्च पाहि पार ।। चेयण गुण ॥११७।। राजु करता जे मुवा, ते भी राजु कराहि । भीख भमंता जे मुवा, ते भीखडीय भमाहि ॥ चेयण मुणु० ।।११।। तपु करि पावइ राज "दु, राजहु नरकुभि होइ । जिनि सुइ प्रसुह निवारिया, सो वंद्या तिहु लोए ॥ चेयरण गुण ॥११६।। काइ पिछोडहि थोथि कहु, जिकु कणु ए कुन होइ । जो रयणायर सटु महि, मसका चडइ न तोए || चेयरण सृणु० ॥१२०॥ कणुता इकु सरवनि जमि, अबरु सौ रुपरालु । जिसु रोवत चौगय तणा, तूट माया जालु ।। यण गुण ।।१२।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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