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चेतन पुद्गल धमाल
तेतीस सागर वरष सुर, जिसु पसाइ सुख दीठ । तिसु जड़ सिज इव राषिया, जिउ कापडा भजीट ।। चेयण सुण |१९४५ तेतीस सागर दुख नरक महि, ते भी वित्ति पितारि । इसु काया के एह गुण, रे जीम देखु सुहियह विचारि ॥ चेयण गुण ॥६IR तेतीस कोडा कोडि क्रम, पोत मोह निहाण। ते सहि काट तपु सहै, काया यहु परवाणु । यख सुणुः ॥६६॥ काया कहु मुकलाह करि, रह्मा निचिता सोइ । ते तपु डूबे लेइ करि, प्रजहू फिरहि निगोए । बेयण गुण ||७| जिय विण पुद्गल ना रहै, करिया प्रादि अनादि । छह खंड भोगे चक्कर्व, काया के परसादि ॥ चेयण सुण ॥६॥ देव नरय तियंजच महि, अरु माणस गति चारि । जिसुका घाल्या सूफिर्या, तिस सिउ हौस निवारि ॥ चेयरण गुण ।।६६ तुझ कारण वहु दुख सहै, इनि काया गुणवंति । चेतन ए उपगार तुझ, छोडि चला इसु ग्रंति ॥ चेयण सुणु० ॥१००।। कासु पुकारउ किसु कहर, हीप भीतर हाह ।। ने गुण होहि गोरी, तउव न छार्ड ताहु ।। चेयरग मुरण ।।१०।। मानु महतु लोगी कुजसु, अरु वडि माकलि माहि । पंच रतन अिसु संगते, चेतन तू रुल हाहि ॥ चेयण सुणु० ॥१०२।। भला कहा जगु मुसे सै, भगलु करे नट जेउ । जड के संगिहि दिठु मैं, घणा बुद्धता एव ॥ चेयण गुण ॥१०३।। माणिकु भीता अति पडा, जा कंचणु तुम्ह पाहि । ता लगु सोमा चेतनहि, जा लगु पुदगल माहि ।। चेयण सुगा० ॥१०४॥ यहुनि कलमलु जीवडा, मुकति सरूपी प्राथि ।। मापा मापु विचिया, इसु काया के साथि ।। चेयष गुणः ।।१०।। मोती उपना सीप महि, विदिमा पाच लोइ । तिउ जिउ काया संगते, सिउपरि वासा होइ ।। चेयण सुरण ।।१०६।। अव लगु मोती सीए महि, तव लगु समु गुण जाई। अव लगु जीयडा संगि अड, तब लगु दुख सहाय ।। चेयण गुण ॥१०॥