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कविवर बुचराज
जिउ ससि मंडणू रथरिका दिनका मंडणू भाणु ।
तिम चेतन का मंडणा,
यहु पुदगलु तूं जणि ॥ चेया सुसु ॥८०॥ जीउ पडइ जंना त्रि ।
कुटी जे घडियाल ।। चेयण गुरु ० ॥८१॥ पुदगलु बालइ राडि ।
जिसकी समती का डि || चेयण सुगु० ॥ ८२ ॥ काय कलेवर वीस सुहु, जतनु जिव जिव पाचै तु बडी, तिव तिथ प्रति कडदाइ || चेयण गुण ० ॥८३॥
कतिहि जाइ ।
जो परमलु हुई कुसम महि, सो किव कीर्ज अंगि पुदगल जीउ सलगनु तिव, इब भारथा" फूलु भर परमलु जीवइ, तिसु जाणं सह कोई
हंसु चलई काया रहs, faवरु बरावर होइ || चेयण गुण | ६५| कहा सकति सिवाहरी सकति विनसिद्ध काई ।
पुद्गलु जीउ सलग तिक, वासु दुइ इकठाए || चेपण सुरगु० ॥६६॥
इसु काया के संगते, यहु
हडे कचोला नीर कछु
जल कहु निदइ जोडा, खेतु भिसोपविणा सरु,
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काया संगिहि जीयडा, राख्या करमिहि बंधि ।
पडघा कपुर जुल्ह सामहि, गयवर वत्तणु गंधि ।। यण गुरु ||७||
कुंजर कुयू मादि दे, संगति तं न वंधिए,
............ ।। चेयण सुर० ॥ ६४ ॥ १
इस काया के संगते, जाण्या उत्तिम धम्भु ।
शुरख सा किव निदियं, किया सफलु जिनि जम्मु || देवण सुरु || अंसे मुद्गल सोम ।
जहा सुखी होइ जीय || वेषण गुण ||
काया तारद जी कहु, सतु संजमु व्रत धार ।
जिउ वेडी सगि उत्तरे, उमर लोहा पारि || चेवण सुरगु० | १६|
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ज वेणी पोहण तणी, इसा जारिए जिय चेतु ।
कोन तिरंता दीठु मह, करि काया सु हेतु || चेयण गुण ० ।।६१३
काया की निंदा करद्दि, प्रापुन देखहि जोइ ।
मि जिउ भोज कांबली, तिच तिउ भारी होइ ॥ चेवण सुरगु० ॥६२॥
इस भरोसे जे रहे, चेसे नाही जागि ।
झूठें तारु बाड़े, भेढह पूछड लागि ।। चेया गुण० ॥६३॥
यह पद्म पहिले ४६ संख्या पर भी मा गया है ।