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________________ ६ कविवर बुचराज जिउ ससि मंडणू रथरिका दिनका मंडणू भाणु । तिम चेतन का मंडणा, यहु पुदगलु तूं जणि ॥ चेया सुसु ॥८०॥ जीउ पडइ जंना त्रि । कुटी जे घडियाल ।। चेयण गुरु ० ॥८१॥ पुदगलु बालइ राडि । जिसकी समती का डि || चेयण सुगु० ॥ ८२ ॥ काय कलेवर वीस सुहु, जतनु जिव जिव पाचै तु बडी, तिव तिथ प्रति कडदाइ || चेयण गुण ० ॥८३॥ कतिहि जाइ । जो परमलु हुई कुसम महि, सो किव कीर्ज अंगि पुदगल जीउ सलगनु तिव, इब भारथा" फूलु भर परमलु जीवइ, तिसु जाणं सह कोई हंसु चलई काया रहs, faवरु बरावर होइ || चेयण गुण | ६५| कहा सकति सिवाहरी सकति विनसिद्ध काई । पुद्गलु जीउ सलग तिक, वासु दुइ इकठाए || चेपण सुरगु० ॥६६॥ इसु काया के संगते, यहु हडे कचोला नीर कछु जल कहु निदइ जोडा, खेतु भिसोपविणा सरु, 1 काया संगिहि जीयडा, राख्या करमिहि बंधि । पडघा कपुर जुल्ह सामहि, गयवर वत्तणु गंधि ।। यण गुरु ||७|| कुंजर कुयू मादि दे, संगति तं न वंधिए, ............ ।। चेयण सुर० ॥ ६४ ॥ १ इस काया के संगते, जाण्या उत्तिम धम्भु । शुरख सा किव निदियं, किया सफलु जिनि जम्मु || देवण सुरु || अंसे मुद्गल सोम । जहा सुखी होइ जीय || वेषण गुण || काया तारद जी कहु, सतु संजमु व्रत धार । जिउ वेडी सगि उत्तरे, उमर लोहा पारि || चेवण सुरगु० | १६| १. ज वेणी पोहण तणी, इसा जारिए जिय चेतु । कोन तिरंता दीठु मह, करि काया सु हेतु || चेयण गुण ० ।।६१३ काया की निंदा करद्दि, प्रापुन देखहि जोइ । मि जिउ भोज कांबली, तिच तिउ भारी होइ ॥ चेवण सुरगु० ॥६२॥ इस भरोसे जे रहे, चेसे नाही जागि । झूठें तारु बाड़े, भेढह पूछड लागि ।। चेया गुण० ॥६३॥ यह पद्म पहिले ४६ संख्या पर भी मा गया है ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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