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________________ चेतन पुद्गल धमाल जिरा पूजा सम्मत गुरु, साहामी सिउनेछु । इन्ह सेठांतिहि सीजीये, नाही मचिरजु एहु || पण गु० ।। ६५ ।। जिसु संगि हलंतह जम्मु गया, एको सुखु नहु लाघु । लोभी जीउ पतंग जिउ, फिर फिर मूरख दाधो || बेयरण सुपु० ॥६६॥ डाइणि मंतु प्रफीम रसु, सिंखिन छोडर जाइ | को को कवणुन मोहिया, काया ढवली लाइ || जेवण गुण० ।। ६७ ।। जो जो ढवली लाइया, सोडविया गवाए । वधु पिटारे पालियां, लिनिक्या कीया उपगारो || वेयण सुर० ||६६।। जोखिकाया व करहि द्वंदी रहणु न जाइ । तजि तपु संसारिहि रूलहि, पार्टी लोक हँसाए || चेयण गुण० || ६ || से तप तिहि कतु किव सलाह, जिन्ह जोध्या संसार । सस, मित, सम करि जाणिया, साध्या संजम भारो ।। चेयण सुम्पु० ॥७०॥ पहिला श्राप देख कसि, लेहि संजमु भाष । जे ता देखहि श्रोडरमा तेता पाव पसारो ॥ चेयण गुरण० ॥ ७१ ॥ मला कतिहि मीत सुणि, जे हुइ वृरंहा जाणि । तो भी भला न छोडिये, उत्तमु यह परवाणु || नेयण सुरसु ॥७२॥ भला भला सहु को कहै, मरमु न जाएं कोई | काया खोई मीतरे, भला न किसही होए || चेमण गुण ० ॥७३॥ धरिया चम्मिहि छाइ हाडद केरा पंजरी, बहु नरकहि सो पूरिया, मूरिख रहिउ लुभाए || चेयस सुसु ॥७४॥ C जिम तर आपण खूप सहि, अवरह छांह कराइ | ति इसु काया संगते, जीयडा मोखिहि जाए || चेवण गुण० ३३७ काया नीचु कुसंगडा, सदर सरि जोइ । साता पकड़े अलिमरे, सोलह काला होइ || चेयरा सुगु० || ७६ जिसु विष्णु खिषु इकु ना सरें, भाव लिये जिसु लागि । जे घर पुर पट्टण दहै, काइ सराइहि चेनहि, पुद्गलु घालहि गडि । खेतु विसो अविरमा सरु, ता घरि कीजइ आगि || चेयण गुरण |তৱ।। जिसुकी सगती वाडी || चेपण सुरसु०॥७८॥ वेस्वाने कसु भरगु, पर जल उपरि कार । इसासु पुद्गल मीत सुरिए, विहहत होइ न वार || चेया गुरुगु० ॥७६ **
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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