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________________ ૨૪ कविवर वृचराज पंचे इंदी दंडि करि थापा प्राप्पु जोइ । जिन पावहि तिरवाण पहुजन हो । सु०॥५०॥ क्या जेहंदी बसि कोई, क्या साध्या अप्पार । इकु परमथुन जारिया, किउ पार्क निश्वासु || वेयण गुण० ॥ ५१ ॥ विणू करमह काटे छापणे जो नर को सीध | ताकि सेण नरक महि, अज दुख भूषेए || बेयरण सुरगु० ॥५२॥ क्या जे सेाकु नरक महि, बहु बहु दुख भूचंतु । भव्व जीयहम हि सो गया, निश्र्च एव सीमंतो || चेयण गुण ० ।। ५३ ।। काया राखहु जतनु करि, चड्डू जेंव गुण ठारिण । विशु मन जमिह भविमणहु, गया न को निरवाणि ।। चयण सुगु० ॥ ५४ ॥ हरतु परंतु दोनच गया, नाउर वास न पा । जिनकरि जाणी श्रापणी से हूबे काली घार || चेयण गुण ० ।। ५५| जिउ वैसंदरु कटु महि, तिल महि तेलु भिजें । आदि अनादि हि जाणियं चेतन पुद्गल एव || चेयण सु० ।। ५६ ।। लेहि संदरु कट्ट तजि, लेहि तेल वलि राडि । चेत हि चेतनु मेलिये, पुदगलु परहर बालि || चयण गुण० ॥५७॥ वालत्तण की वालही, गुणहि न पूर्ज कोई | परम पदु होइ || फेयरण सुरगु० ॥५८६ कतिहि जाढ़ | सा काया किव निदिये, जिस काया कर जलु मंजुली, जतनु उत्तिमु विरता नित रहै मूरिखु इमु पतियाए || चेयरण गुर० ॥५६ मनका सत्रु को करइ, चितु कसि करइ न कोइ । सिखरहु जब खडे, तबरु विगुचरिंग होइ || चेयरा सुरगु० || ६० सिखर मूलि न खब हुई, जिण सासरण श्राधारु । सूलि ऊपरि सोझिया, चोरि जया नवकारु || चेय गुण ० ।। ६१ ।। उइ साधण परिणाम उद, कालभि उद यावोर । इव साध फिराह सहि डोलते, सदि सी थे चोर || चेयण सुरसु० ||६२ || साधुन डोल भूमि हरि, जिसु महि ज्ञानु रतन्तु । तेरह विधि चारितु घरं पुद्गल जागा प्रन्नु || ये गुण ० ॥ ६३॥ पुद्गलु अन्तु न जागियहु, देखहु मनि विपाइ । किरिया संजता च, जा पुद्गल होइ सखाए || पण सुरगु० || ६४
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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