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________________ कविवर बूचराज माठ कम्म जिनि निरजरे, चितवइ रागि घरेइ । मन करण "श्री अनंत जिरगु", भवियह वंचित देह ।। चेयण सुरगु० ।।२२।। संवरु करि जो गुण पडया, मलिया मयण ह मानु | "धम्मनाथ" धम्मह मिला, हो पणवउ धरि ध्यानु ।। चेयरण गुण ॥२३।। गळि हथिनापुरि भक्तरबा. दिपई अंगु कणकति । सो संघह मंगलु करइ, “संति करण जिणु" संति ।। यण सुरण ।।२४।। जासु धनुष पर तीस तनु, कुखि श्रीमति अवतार । सो तुम्हापहि खिउ करइ, सबरहु "कुथु" कुवारो ।। चेपण गुण ॥२५।। जो राटा सिव ररिणमिर, सतह कम्म निलेड । प्रारति मंजगा "अरह जिरगु", अजिय सु पदु हम देइ ।। चेयण सुरण ॥२६॥ कुभ नरिवह राइ तनु, मियलापुरि अवतारु । "मल्लि जिरणसरु" पविपइ, आवागवणु निवारो ॥ धेयए गुण ||२७|| राजगिरिहि मढि अवतरया, सोहइ कज्जल वन्नु । "मुरिण सुग्वज जिणु" श्रीसमा, संघ सयल सुपसनो ।। चेयण सुण ॥२८।। जिमका नाउ जपंति यह, छीजई कम्म कलेसु । विजयराइ घरि मवतरघा, सब रह "नमि सु जिरणेसो" । चेयण गुण ॥२६॥ चल्या सु नव भव नेह, तजि पसु वचन मु विचारि। वंद स्वामी "नेमि जिणु", जो सीझइ गिरनारि ।। चेयण सुणु: ।।३०॥ प्राव भोगि जिन सउ वरिस, कीया मुकति सिउ साथु । सकल मूरति हज बंदिसिउ, स्वामी "पारसनाथ" ॥ चेयण गुण ।।३१॥ करि करुणा सुरण वीनती, तिमुवरण तारण देव । "बोर जिरणेसर" देहि मुझ, जनमि जनमि पद सेव ।। त्रेयण सुग्गु० ॥३२।। परहंत सिद्धह चार अह. पर अवाह्या पणमेहि 1 सव्वं साह जे नमहि, ते संसार तरेहि ।। चेयरण गुण ।।३३॥ पंच प्रमिष्ठी 'वरूह कपि' ए पणमो धरि भाउ । घेतन पुद्गल दहूक, सावु शिवा सुणावो । चेयण सुरगु० ।।३४॥ यह जड खिणिहिं विघसिरणी, ता सिर संगु निघारु । चेतन सेती पिरति करु, जिउ पावहि भव पारो ।। चेयण गुण ।।३।। बार बारु तुम्ह सिउ कहउ, किता क्रु पूछहि का। जिमु जर ते तू गुणि चल्या, तासि पिरतिम तोडि ।। चेयण सुणु ॥३६॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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