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चेतन पुदगल घमाल
जिस ससरायह तणा, मलिया मयण होउ । 'अजिसनाथ' पय पणमिमहि पावद कम छेउ | घेथन सुणु निरगुरण जड, सिद्ध संगति की जइ । इस अह परसादिहि, मोखह सुखु बिलसीजै ।।६।। जड़ सहइ परीसह काट करमह भागे । जिसु जड न सरवाई, तिसु उरकार न पारो ।।१०॥ तनु साध्या मोखिहि गया, कीया करमह अत । संभव स्वामी दय, जि जसजससु । चेयण गुणवंता जड़ायो संगु न कीजं ॥११॥ भौगति तरि सिउपरि गया, सरि सायस प्रथाह । सोहउ ध्याक हियर धरि, 'प्रभिनन्दनु' जिणणाहु ।।
यण सुणु निरगुरण जड सिउ संगति कीजइ ।।१२।। बहुस घुणह पवाणु सनु, मेघरायह परि बंदु । नामु लित पातिग ह्यडहि, वंदहु सुमति जिणंद ।। चैयण गुणः ॥१३॥ चारित चरि मोनिहि गया, माया मोह निवारि । 'पदमपह' जिण पद कचल, नवउ सदा सिझधारि ॥ पण सुरगु० ॥१४।। जिसु मुस्खू दोटे भवणा, गुट करमह फासु । सो बंदहु तारण तरण, स्वामी देउ 'सुपासु' || चेयण गुण ॥१५॥ जिसु लमंणि ससिहरु, 'अहइ राप' महसेगह तनु । चंदप्पड जिणु पाठमा, संघ सयल सुपसन्नु ।। चेपणा सुण ॥१६॥ चौदह रजु सह लोउ, जिन दीठा घटि अबलोइ । "पुहपि जिसरु" पमियइ, पुनरपि जनमु न हो ॥ चेयण गुण ।'१७|| राइ दिनह तनु कुलि कबलु, मुकति रिउरि हारु । "सियल जिागेसरु" ध्याईये, बंछित सुख दातारु ।। चेयण सुग्गु० ॥१८॥ अस्सी घुणह पवारण तनु, कंचरण चन्नु सरीरु । हउ पणउ "श्रीयांस जिणु", स्वामी गुणिहि गही ।। चेयण गुण ॥१६॥ "बसुसेगाह" परि अवतारया, छेद्या जिन भव कंदु । "वासुपुर" जिणु वंदिया, जिसु बंदइ सुर इंदु ।। चेयण सुगु० ।।२०।। साहिए परीसह मोंखिहि गया, मगरण महाभड मोडि । "विमल जिणेंसर" विमलमति', हउ पणज कर मोडि ।। चेयण गुणः ।।२१॥