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________________ कातन्त्ररूपमाला नपुंसकलिङ्गे वर्तमानः स्वरो ह्रस्वो भवति । सोमपम् । सोमपे । सोमपानि । हे सोमप । हे सोमपे ! हे सोमपानि । पुनरपि । सोमपं । सोमपे । सोमपानि । शेषं पुल्लिङ्गवत् । इत्याकारान्ताः । इकारान्तो नपुंसकलिङ्गो वारिशब्दः । सौ- I ७२ नपुंसकात्स्यमोर्लोपो न च तदुक्तं ॥ २४५ ॥ नपुंसकात्परयोः स्यमोर्लोपो भवति तदुक्तं कार्यं न भवति । वारि । नामिनः स्वरे || २४६ ॥ नाक हो । औरीमिति ईत्त्वं णत्त्वञ्च । वारिणी । जसि पूर्ववत् । नुरागमः । सामान्यविशेषयोर्विशेषो विधिर्बलवान् इति न्यायात् । उक्तञ्च । सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेषो बलवान् भवेत् । परेण पूर्वबाधो वा प्रायशो दृश्यतामिह ॥ १ ॥ धुस्वरादघुटि नुः इत्यनेन सूत्रेण नुरागमो भवतीत्यर्थः ॥ इन्हन्पूषार्यम्णां शौ च ॥ २४७ ॥ इन् हन् पूषन् अर्यमन् इत्येतेषामुपधाया दीर्घो भवति नपुंसकलिङ्गे जस्शसोरादेशे शौ चासम्बुद्धौ सौ च परे । वारीणि । इस प्रकार से आकारांत शब्द हुये। अब इकारांत नपुंसक लिंग वारि शब्द है । वारि + सिं, वारि + अम् नामि है अन्त में जिनके ऐसे शब्दों में नपुंसकलिंग से परे सि, अम् का लोप होकर 'मु' तु का आगम नहीं होता है ॥ २४५ ॥ अतः वारि, वारि बना । वारि + औ नाभ्यंत नपुंसक लिंग से परे नु का आगम हो जाता है स्वर वाली विभक्ति के आने पर ॥ २४६ ॥ अतः 'औरीम्' सूत्र से औ को 'ई' एवं रघुवर्णेभ्यः इत्यादि सूत्र के निमित्त से न् को ण् होकर वारिणी बना । जस विभक्ति के आने पर पूर्ववत् जस् को 'इ' और नु का आगम तथा 'घुटि चासंबुद्धी' से दीर्घ प्राप्त था । यद्यपि यहाँ 'नामिनः स्वरे' सूत्र से नु का आगम हो सकता था फिर भी सामान्य और विशेष में विशेष विधि बलवान होती है इस न्याय से 'धुट् स्वराद् घुटि नः २४० वें सूत्र से जस्, शस् के आने पर नु का आगम हुआ है। इसी बात को श्लोक में भी कहा है--- श्लोकार्थ — सामान्य शास्त्र की अपेक्षा से निश्चित ही विशेष शास्त्र बलवान् होता है अथवा प्राय: करके व्याकरण में पर सूत्र की अपेक्षा पूर्व सूत्र बाधित हो जाया करते हैं। I इन् हन् पूषन् अर्यमन् इन शब्दों की उपधा को दीर्घ हो जाता है नपुंसक लिंग में जस् शस् को शि आदेश होने पर एवं असंबुद्धि सि के आने पर ॥ २४७ ॥ अतः 'वारि न् इ' इसमें न् की उपधा को दीर्घ हो गया पश्चात् 'रष्टवर्णेभ्यः' इत्यादि सूत्र से न् को ण् होकर वारीणि बना । संबोधन में वारि + सि
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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