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________________ स्वरान्ताः पुल्लिङ्गाः ऋदन्तात्परथोङसिङसोरकारः पूर्वस्वरेण सह उमापद्यते । पितुः । पितृभ्याम् । पितृभ्यः । पितुः । पित्रोः । पितॄणाम् । अर्डों ॥। १९९ ।। ऋदन्तस्य च भवति छौं परेषु भ्रातृजामातृ सवितृ प्रभृतयः । कर्तृशब्दस्य तु भेदः । सौ-कर्ता घुटि । धातोस्तृशब्दस्यार् ॥ २०० ॥ । I धातोर्विहितस्य तृशब्दस्य ऋत आर्भवति घुटि परे । कर्तारौ । कर्तारः । हे कर्त्तः । हे कर्त्तारौ । हे कर्त्तारः । कर्त्तारम् । कर्त्तारौ कर्तृन् । अन्यत्र पितृशब्दवत् । धातोर्विहितस्य किं ? मातरौ । मातरः । यती प्रयत्ने । यतेः ऋत् दीर्घश्च उणादिप्रत्ययः । तृशब्दस्येति किं ? ननान्दरौ । ननान्दरः । एवं धातृ भतृ ज्ञातु वे श्रोतृ नेतृ पक्त भोक्तृ पक् प्रभृतयः । क्रोष्टुशब्दस्य तु भेदः । क्रोष्टा । क्रोष्टारौ । क्रोष्टारः । सम्बुद्धौ । और स् को विसर्ग होकर पित् + उ = पितुः बना। पितृ + ओस्—संधि होकर पित्रो: । पितृ + आम् नु का आगम, पूर्व स्वर को दीर्घ, एवं न् को ण् होकर पितॄणाम् बना । पितृ + ङि ङि के आने पर ऋ को अर् हो जाता है ॥१९९ ॥ पितर् + इ = पितरि + पित्रोः पितृषु । पितरौ पितरः हे पितरौ ! हे पितः । पितरौ पितृभ्याम् इसी प्रकार से भ्रातृ, जामातृ और सवितृ के रूप चलते हैं। 1 कर्तृ शब्द में कुछ भेद हैं। पित हे पितः ! पितरम् पित्रा पितॄन् पितृभिः पित्रे पितुः पितुः पितरि पितृभ्याम् पितृभ्याम् ५५ पित्रोः पित्रोः . पितृभ्यः पितृभ्यः पितॄणाम् पितृपु कर्तृ+सि " आसौ सिर्लोपश्च " सूत्र से कर्ता बना कर्त्तृ + औ धातु में कहे गये 'तृ' शब्द के ऋ को आरू हो जाता है घुट् स्वर के आने पर ॥ २०० ॥ कर्त् आर् + औ कर्त्तारौ, कर्त्तारः । संबोधन में पूर्ववत् - हे कर्त्तः इत्यादि । रेफ से आक्रांत वर्ण को कही कहीं द्वित्व होने से कर्ता बन जाता है 1 शंस से सुप् तक बाकी सब रूप पितृवत् चलते हैं । यहाँ सूत्र में ' धातु से तू' प्रत्यय ऐसा क्यों कहा ? यती धातु प्रयत्न अर्थ में है उणादि प्रत्यय के गण में यत् के य को दीर्घ और ऋ प्रत्यय हुआ है। तो यहाँ धातु से तृ प्रत्यय नहीं हैं अतः आर् न होकर पितृवत् अर् ही हुआ तो यातरों बना। तृ शब्द को ऋ का आर् हो ऐसा क्यों कहा ? तो ननान्द शब्द हैं इसमें तृ नहीं है अतः इसमें दीर्घ आर र होकर अर् ही होगा । दरौ बनेगा। इस कर्त्ता के समान ही घुट् स्वर में आर होकर ही ऊपर मूल में लिखे धातृ से लेकर वप्तृ आदि रूप चलते हैं।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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