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स्वरान्ता: पुल्लिङ्गाः अकारान्ताल्लिङ्गात्परष्टा इनो भवति । सन्धिः ।
रवर्णेभ्यो नो णमनन्त्यः स्वरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि ॥१३९ ।। रेफषकारऋवर्णेभ्य: परोऽनन्त्यो नकार; मापद्यते स्वरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि शब्दान्तरोऽपि । स्वरान्तरस्तावत् । पुरुषेण । द्विवचने ।
अकारो दीर्घ घोषवति ।।१४०॥ लिङ्गान्तोऽकारो दीर्घमापद्यते घोषवति परे । पुरुषाभ्याम् ।
भिसैस्वा ।।१४१ ।। अकारान्ताल्लिङ्गात्परो भिस् ऐस् वा भवति । सन्धिः । पुरुषैः । तथैव सम्प्रदामविवक्षायाम् । शेषा: कर्मेत्यादिना सम्प्रदाने चतुर्थी।
डेयः ॥१४२ ॥ अकारान्ताल्लिङ्गात्परो डेयों भवति। घोषवति दीर्घः । पुरुषाय । द्वित्वे पूर्ववत् । पुरुषाभ्याम् । बहुत्वे।
पुरुष + इन—'अवर्ण इवणे ए' से संधि होकर पुरुषेन बना । पुन:
रेफ, षकार और ऋवर्ण से परे यदि णकार अंत में नहीं है और वह स्वर ह, य, व कवर्ग और पवर्ग के अनतर है तो वह नकार णकार हो जाता है ॥१३९॥
__ अर्थात् यदि स्वर ह, य, व आदि उस नकार के अनंतर है तो नकार णकार हो जाता है । अत: 'पुरुषेण' बना
द्विवचन में--पुरुष + भ्याम् है।
. घोषवान् के आने पर लिंगांत अकार दीर्घ हो जाता है ॥१४० ॥ तो पुरुषाभ्याम् बना। बहुवचन में पुरुष + भिस् है।
भिस् को ऐस् हो जाता है ॥१४१ ॥ लिंगांत अकार से परे—पुरुष + ऐस् 'एकारे ऐ ऐकारे च' सूत्र से संधि हुई तो पुरुषैस् । पुनः 'रेफसोर्विसर्जनीयः' से विसर्ग होकर पुरुषैः बना।।
सम्प्रदान की विवक्षा के होने पर 'शेषा: कर्मकरण' इत्यादि सूत्र से चतुर्थी विभक्ति आती है। पुरुष + डे।
डे को 'य' हो जाता है ।१४२ ॥ लिंगांत अकार से परे डे को य आदेश हो जाता है और 'अकारो दीर्घ घोषवति' से दीर्घ होकर पुरुषाय बन जाता है।
द्विवचन में पूर्ववत् पुरुषाभ्याम् । बहुवचन में पुरुष म्यस् है ।