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________________ १८८ कातन्त्ररूपमाला सप्तम्यन्तादुभयशब्दात्परो घुस् भवति । चकारात् एघुस् भवति । उभयस्मिन्नहनि उभयेधुः । उभयधुः। परादेरेविस् ॥५३८॥ परादेर्गणात्पर एद्यविस् प्रत्ययो भवति । परस्मिन्नहनि परेद्यविः । एवमन्येद्यविः । अन्यतमद्यविः । इत्यादि। प्रकारवचने तु था ॥ ५३९॥ अद्यादे: सर्वनाम्न प्रकारवचने तु था भवति । प्रकारशब्द; सदृशार्थों विशेषार्थश्च । सामान्यभेटक: प्रकारः। सर्वेण प्रकारेण सर्वथा। एवमन्यथा। यथा । तथा। उभयथा। पूर्वथा। अपरथा। वाक्यार्थविशेषण सर्वविभक्तिभ्यो ज्ञेयः थाप्रत्ययः । सर्वस्मिन् प्रकाराय यदि वा सर्वस्मिन् प्रकारे सर्वथा इत्यादि। संख्यायाः प्रकारे धा ।। ५४०॥ ___ संख्यायाः परः प्रकारवधने धा भवति । चतुर्भिः प्रकारैः चतुर्धा । एवं द्विधा । एकधा । बहुभिः प्रकारैर्बहुधा । पञ्चधा । षोढा । षट्प्रकारा अस्य इति विग्रहः । षष् उत्वम् ।।५४१ । षष्शब्दस्यान्त उत्वं भवति । सप्तधा । अष्टधा । नवधा । दशधा । सहस्रधा । लक्षधा ! कोटिया । द्वित्रिभ्यां धमणेधा च ॥५४२ ।। द्विविभ्यां परो धमण एधा च प्रत्ययौ भवतः प्रकारवचने । द्वैधं । त्रैधं । द्वेधा । त्रेधा। चकार से एद्युस् प्रत्यय होता है। उभयस्मिन् अहनि उभयेयु: उभयछुः । परादि गण से परे एद्यविस् प्रत्यय होता है ।। ५३८ ॥ परस्मिन् अनि परेद्यविः । ऐसे ही अन्येद्यवि: अन्यतमेद्यवि: इत्यादि। द्वि आदि से रहित सर्वनाम से प्रकार अर्थ में 'था' प्रत्यय होता है ॥ ५३९ ।। प्रकार शब्द सदृश अर्थवाची और विशेष अर्थवाची है । सामान्य में भेद करने वाले को प्रकार कहते है । सत्रण प्रकारेण, सर्व+टा, था विभक्ति का लोप होकर 'सर्वथा' बना। इसी प्रकार से अन्यथा, येन प्रकारेण, यथा, तथा, उभयथा, पूर्वथा, अपरथा आदि बन गये। वाक्य अर्थ की विशेषता से सभी विभक्तियों से 'था' प्रत्यय हो जाता है । जैसे सर्वस्मै प्रकाराय अथवा सर्वस्मिन् प्रकारे सर्वथा बन गया इत्यादि । संख्या से परे प्रकार अर्थ में 'धा' प्रत्यय होता है ॥ ५४० ॥ चभिः प्रकारैः चतुर्धा, द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां = द्विधा, एकेन प्रकारेण = एकथा, बहुभि: प्रकारैः बहुधा, पञ्चधा । इत्यादि । घट् प्रकारा ऐसा विग्रह है षष् + जस् विभक्ति का लोप हुआ। षष् शब्द के अंत को उकार हो जाता है ॥ ५४१ ॥ ष उ था संधि होकर एवं तवर्ग को ५२२वें सूत्र में ट वर्ग होकर धा को ढा हुआ अत: 'घोढा' बना। ऐसे ही सप्तधा, अष्टधा, नवधा, दशधा, शतधा, सहस्रधा, लक्षघा, कोटिधा। द्वि, त्रि से परे प्रकार अर्थ में धमण और एधा प्रत्यय होता है ।। ५४२ ॥ ___धमण के अण् का अनुबंध होकर णानुबंध के निमित्त से वृद्धि होकर द्वैथं, त्रैध बना। एधा प्रत्यय से 'इवर्णावर्णयोलोप:' इत्यादि से इवर्ण का लोप होकर द्वेधा, त्रेधा बना ।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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