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________________ तद्धितं १८७ दादानीमौ तदः स्मृतौ ॥५३२॥ काले वर्तमानात्सप्तम्यन्तासदः परौ दादानीमौ स्मृतौ । तस्मिन् काले तदा । तदानीं । सद्यआद्या निपात्यन्ते ।।५३३ ।। सद्यआधाः शब्दा: कालेऽभिधेये निपात्यन्ते। लक्षणसूत्रमन्तरेण लोकप्रसिद्धशब्दरूपोच्चारणं निपातनं । समाने अहनि सद्यः । समानस्य सभावो द्यश्च परविधिः । अस्मित्रहनि अझ । इदमो अद्भावोद्य च परविधि: । पूर्वस्मिन् संवत्सरे परुत् । पूर्वतरस्मिन् संवत्सरे परारि । पूर्वपूर्वतरयोः पर उदारी च संवत्सरे ॥ ५३४ ।। पूर्वपूर्वतरयो: उत्आरी च भवतः । चशब्दात्पर आदेशच संवत्सरेऽर्थे । इदमः समसण ।। ५३५ ॥ सप्तम्यन्तादिदम: समसण् प्रत्ययो भवति संवत्सरेऽर्थे । अस्मिन्संवत्सरे ऐषमः । पूर्वादरेधुस् ॥ ५३६ ॥ सप्तम्यन्तात्पूर्वादेर्गणात् पर एद्युस् प्रत्ययो भवति । पूर्वस्मिनहनि पूर्वेयुः । एवं परेछुः । अन्येयुः । अन्यतरेयुः । इतरेधुः । कारेछुः । अपरेछु ।। उभयाद् धुश्च ॥ ५३७ ॥ काल अर्थ में सप्तम्यंत तद् से परे 'दा' दानीम् प्रत्यय होते हैं ॥ ५३२ ॥ तस्मिन् काले तद् को 'त्यदादीनामविभक्तों' से त होकर 'तदा, तदानीम्' बना। सद्य, अद्य शब्द निपात से सिद्ध होते हैं ॥५३३ ।। सद्य अद्य शब्द काल अर्थ में निपात से सिद्ध हो जाते हैं व्याकरण सूत्र के बिना लोक प्रसिद्ध शब्द रूप का उच्चारण निपात कहलाता है। जैसे समाने अहनि सद्यः यहाँ समान को 'स' आदेश एवं आगे ध; आदेश होकर 'सद्यः' बना है। अस्मिन् अहनि अद्य इदम् को 'अ' आदेश और 'द्य' विधि होकर 'अद्य' बना है। संवत्सर अर्थ में पूर्व और पूर्वतर को पर आदेश होकर क्रम से आगे उत् और आरि हो जाता है ॥ ५३४ ॥ पर + उत्, पर+आरि “इवर्णावर्णयोलोप:' इत्यादि से अकार का लोप होकर परुत् परारि बना। सप्तम्यंत इदं शब्द से समसण् प्रत्यय होता है ।। ५३५ ॥ अस्मिन् संवत्सरे अर्थ में इदम् + डि समसण के अण् का अनुबंध लोप होकर इदम् को 'इ' आदेश होकर णानुबंध से वृद्धि होकर ऐसमस् बना सकार को षकार एवं स को विसर्ग होकर 'ऐषमः' बना। __सप्तम्यंत पूर्वादि गण से परे ‘एद्युस्' प्रत्यय होता है । ५३६ ॥ ___ पूर्वस्मिन् अनि पूर्व + डि विभक्ति का लोप एवं अकार का लोप होकर पूर्वेद्युः बना। ऐसे ही परस्मिन् अहनि परेछु;, अन्यस्मिन् अहनि अन्येयुः अन्यतरस्मिन् अहनि-अन्यतरेयुः इतरस्मिन् अहनि, इतरेयुः, कतरेयुः, अपरेयु: बना। सप्तम्यंत उभय शब्द से परे धुस् प्रत्यय होता है ।। ५३७ ॥
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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