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________________ १११ व्यञ्जनान्ता: पुल्लिङ्गाः अदस: पदे सति दस्य मो भवति । उत्वं मात् ॥२६॥ अदसो मात्परो वर्णमात्रस्योत्वं भवति आन्तरतम्यात् । अमू । जसि एदबहुत्वे त्वी॥३२७॥ अदसो मात्परो बहुत्वे निष्पन्ने एदीर्भवति । अमी । अमुं। अमू । 'अमून् । अदो मुश्च ॥३२८॥ अदसो मुरादेशो भवति टावचनस्य च नादेशोऽस्त्रियाम् । अमुना। अमूभ्याम् । अदस ॥३२९। ___ अदसोऽग्वर्जितात्परो भिस् भिर् भवति । धुट्येत्वम् । अमीभिः । अमुष्मै। अमूभ्याम् । अमीभ्यः । अमुष्णात् । अपूभ्यां । अमीभ्य: । अमुष्य । अमुयो: । अमीषाम् । अमुष्मिन् । अमुयो: । अमीषु ॥ श्रेयन्स् शब्दस्य तु भेदः । श्रेयान् । श्रेयांसौ । श्रेयांस: । हे श्रेयन् । हे श्रेयांसों । हे श्रेयांसः । श्रेयांसं । श्रेयांसौ। श्रेयसः । श्रेयसा। श्रेयोभ्यां । श्रेयोभिः । पुमन्स्शब्दस्य तु भेदः । पुमान् । पुमांसौ । पुमांसः । हे पुमन् । पुमांसं । पुमांसौ। - - - अदस के 'म' से परे 'वर्णमात्र द' के 'अ' सहित विभक्ति मात्र को उकार हो जाता है ॥३२६ ॥ और वह उकार आदेश क्रम से होता है; यथा—ह्रस्व स्वर को ह्रस्व 'उ' एवं दीर्घ स्वर को दीर्घ '' होता है । यहाँ दीर्घ औ है । अत: दीर्घ ऊ होकर–अम् +ऊ= अमू बना । अद+ जर है पूर्वोक्त “अदस: पदे म:” सूत्र से 'द' को 'म' करके "ज: सर्व इ." इस १५२वें सूत्र से जस् को 'इ' और संधि होकर 'अमे' बना । पुन:.-. ___ बहुवचन के 'ए' को 'ई' हो जाता है ॥३२७ ॥ अदम के 'म्' से परे बहुवचन में बने हुए 'ए' को 'ई' होकर 'अमी' बना । अद + अम् है । 'द' को 'म' एवंद के 'अ' सहित अम् के अ को 'उ' होकर 'अमुम्' बना । अद+ शस् है। पहले अदान् बना करके 'द' को 'म' और दीर्घ 'आ' को 'ऊ' करके 'अमून्' बना। अद+टा हैं। स्त्रीलिंग को छोड़कर अदस् को 'अमु' एवं 'टा' को 'ना' आदेश हो जाता है ॥३२८ ॥ ___अत: 'अमुना' बना । अद+ भ्याम् 'अकारो दीर्घ घोषवति' सूत्र से 'अदाभ्याम् करके द् को म् एवं 'आ' को ऊ करने से 'अमूभ्याम्' बना। अद + पिस् है पूर्ववत् 'द' को 'म्' करके आगे सूत्र लगा। अक् वर्जित अदस् से परे 'भिस्' को 'भिर्' आदेश हो जाता है और धुट के आने पर एकार' भी हो जाता है ॥३२९ ॥ अत: 'अमेभिः' बन गया । पुन:—'एबहुत्वे त्वी' सूत्र से बहुवचन के 'ए' को 'ई' करके 'अमीभिः' बना । अद +डे है पूर्ववत् द को 'म' और 'अ' को 'उ' करके "स्मै सर्वनाम्नः" इस १५३वें सूत्र से 'डे' को 'स्मै' करके 'नामि' से परे स् को प करने से 'अमाम' बना। अद+ इसि पूर्ववत् द् को म, अ को 'उ' करके “सि स्मात्" इस १५४वें सूत्र से स्मात् करके स् को प हुआ और 'अमुष्मात्' बना। अद + ओस् है द को 'म' करके 'ओसि न्' १४६वें सूत्र से अ को 'ए' एवं संचि करके 'अमयो:' बना एवं 'उत्वं मात्' से म के 'अ' को '3' करके 'अमुयो:' बन गया। १.शसि सस्य च नः :
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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