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________________ ( २१ ) चक्खू सुदं पुधतं मागोवा तहेव उवसंते । उवसातय अद्धा दुगुणा सेसा हु सविसेसा ||२०|| चक्षु इंद्रिय सम्बन्धी मतिज्ञानोपयोग, श्रुतज्ञानोपयोग, पृथक्त्ववितर्कवीचार ध्यान "मतिज्ञान, युवशान्तकषाय और उपशामक के उत्कृष्ट कालों का परिमाण अपने से पूर्ववर्ती स्थान के काल से दुगुना है। उक्त पदों से शेष बचे स्थानों का उत्कृष्टकाल अपने से पहिले स्थान के काल से विशेषाधिक है । विशेष-१ चारित्र मोह के जघन्य क्षपणाकाल के ऊपर चक्षुर्दर्शनोपयोग का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। इससे चक्षुज्ञानोपयोग का काल दूना है । चक्षुज्ञानोपयोग के उत्कृष्ट काल से श्रोत्र ज्ञानोपयोग का उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है | गाथा २० में आगत पद सेसा हु सविसेसा' से उपरोक्त अर्थ अवगत होता है । शंका- केवलज्ञान और केवलदर्शन का उत्कृष्ट उपयोग काल अन्तर्मुह कहा है। इससे ज्ञात होता है कि उन दोनों की प्रवृत्ति एक साथ नहीं होती, किन्तु क्रमशः होती है । यदि केवल ज्ञान और केवल दर्शन की एक साथ प्रवृत्ति मानी जाती है, तो तद्भवस्थकेवली के केवलज्ञान और केवल दर्शन का उपयोग काल कुछ कम पूर्व कोटिप्रमाण होना चाहिये, क्योंकि गर्भ लेकर ग्राठ वर्ष काल के व्यतीत हो जाने पर केवल ज्ञान सूर्य की उत्पत्ति देखी जाती है- "देसूण पुव्यकोडिमेत्तरेण होदव्वं, गन्भादिश्रटुबर सेसु इक्कसु केवलनादिवायरसुग्ग- मुचलंभादो" [ पृष्ठ ] समाधान - केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण का एक साथ क्षय होता है, क्योंकि क्षीणकषाय गुणस्थान में ज्ञानावरण, २ मोहणीयजहण-खवणढाए उवरि चक्खुदंसणु उक्कस्सकालो विसेसाहियो, णाणुवजोगस्स उक्कस्स कालो दुगुणो (पृ. ७२ )
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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