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________________ विशेषाधिक है। उससे ( २० ) उससे उपशांतकषाय का जघन्य काल क्षीणमोह का जघन्य काल विशेषाधिक है। उससे उपशामक का जघन्य काल विशेषाधिक है । उससे क्षपक का जघन्य काल विशेषाधिक जानना चहिये । विशेष - ( १ ) अन्तरकरण कर लेने पर जो नपुंसक वेद का क्षपण है, उसे संक्रामण कहा है। नपुंसक वेद का क्षपण होने पर ग्रवशिष्ट नोकषायों के क्षपण को अपवर्तन कहा है । तथा बारहवें उपशमश्रेणी पर आरोहण करने वाला जब मोहनीय का अन्तरकरण करता है, मानद उपमा कहते सागर जी महाराज क्षपक श्रेणी पर आरोहण करने वाला जब मोह का अन्तरकरण करता है तब उसे क्षपक कहते हैं । पिव्याघादेदा होंति जहराणा श्रागुपुथ्वीए । एत्तोपुवी उक्कस्सा होंति भजियव्वा ॥ १६ ॥ ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती को उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती को क्षीणकषाय कहा है। पूर्वोक्त चार गाथाओं द्वारा प्रतिपादित अनाकार उपयोग आदि सम्बन्धी जघन्यकाल आनुपूर्वी क्रम से व्याघात रहित अवस्था में होता है। इससे आगे कहे जाने वाले उत्कृष्टकाल सम्बन्धी पदों को अनानुपूर्वी अर्थात् परिपाटी क्रम के बिना जानना चाहिए । पूर्वोक्त पदों का उत्कृष्टकाल कहते हैं । १ अंतरकरणे कए जं णवंसयवे यक्खवणं तस्स 'संकामण' त्ति सण्णा वुंसय वे खविदे सेस - पीक सायकलवणमोवट्टणं णाम । उवसमसेढि चढमाणेण मोहणीयस्स अंतरकरणे कदे सो उवसामयो ति भण्णदि । खवयसेढि चढमाणेण मोहणीयस्स अंतरकरणे कदे 'खवेंतो ति भण्णदि [ ७१] 1 }
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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