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किया गया है । उपसर्गं सहित केवली में हो यह कथन सुघटित होता है ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्रहन्वागिरे मात्र से एकत्ववितर्क प्रवीचार १ तथा पृथक्त्ववितथीचार रूप शुक्लध्यानों का ग्रहण किया गया है।
उपशमश्रेणी से गिरनेवाला प्रतिपात सांपरायिक, उपशम श्रेणी पर प्रारोहण करने वाला सूक्ष्मसांपरायिक संगमी उपशामकसांपरायिक तथा क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाला सूक्ष्मसांपराविक क्षपक सूक्ष्मपरायिक कहा जाता है । मादा कोहद्धा मायद्धा तहय देव लोहद्वा । खुद्धभवग्गणं पुण किट्टीकरणं च बोद्धव्या ॥१७॥ -
roseraiyaकि वो जयन्य काल की अपेक्षा मान कपाय का जघन्य काल विशेषाधिक है। उससे विशेष अधिक क्रोध का जघन्य काल है | उससे विशेषाधिक माया कषाय का जघन्य काल है। उससे विशेषाधिक लोभ कषाय का जघन्य काल है। उससे विशेषाधिक क्षुद्रग्रहण का जघन्य काल है । उससे विशेषाधिक कृष्टिकरण का जघन्य काल है ।
विशेष-- क्षुभव ग्रहण के जघन्य काल से विशेष अधिक काल कृष्टिकरण का कहा गया है । यह जघन्य कृषि लोभ के उदय के साथ पक श्रेणी पर चढ़ने वाले जोव के होती है । 'एसा लोहोपण खगसेकि चस्सि होदि' ( पृष्ठ ७१ )
संकामा श्रवण उवसंत कसाय - खीणामोहन्द्रा । उवसातय - अद्वा खवेंत - अद्धा य बोद्धव्वा ॥ १८ ॥
कृष्टिकरण के जघन्य काल से संक्रामण का जघन्य काल विशेषाधिक है। उससे विशेषाधिक जघन्य काल अपवर्तन का है ।
१ एकत्वेन वितर्कस्य श्रुतस्य द्वादशांगादेरविचारोऽर्थं व्यंजनयोगसंक्रान्तिर्यस्मिन् ध्याने तदेकत्ववितर्कावीचारं ध्यानं । पृथक्त्वेन भेदेन fanita श्रुतस्य द्वादशांगादेव चारोऽयं व्यंजन-योगेषु संक्रा न्तिर्यस्मिन् ध्याने तत्पृथक्त्ववित कंबीचारं ध्यानम् [30]