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________________ अर्थाधिकार के चतुर्विशति अनुयोगद्वार नाम के अधिकार कहे गए हैं । कषायप्रामृत पागलाया:अर्थाचियाना तुलाघासारसजीएमयाराज पुण कसायपाहुडस्स पयदस्स पण्णारस प्रत्याहियारा ।” (पृष्ठ २८) * पंचम भेद चूलिका के जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता रूप पांच भेद कहे गए हैं । के जलगता चूलिका जल-स्तंभन, जल में गमन के कारण रूप मंत्र, तंत्र, तपश्चरण, अग्नि स्तंभन, अग्निभक्षण, अग्नि पर प्रासन लगाना, अग्नि पर तैरना आदि क्रियाओं के कारण, स्वरूप,प्रयोगों का वर्णन करती है । स्थलगता चूलिका पर्वत, मेरु, पृथ्वी आदि पर चपलतापूर्वक गमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है। मायागता चूलिका महान इंद्रजाल का वर्णन करती है। रूपगता चूलिका सिंह, हाथी, घोड़ा, बैल, मनुष्य, वृक्ष, खरगोश प्रादि का रूप धारण करने की विधि का तथा नरेन्द्रवाद का 'परिंदवायं च' वर्णन करती है। आकाश में गमन के कारण मंत्र, तंत्र तथा तपश्चरण का वर्णन आकाशगता चूलिका में किया गया है। कपाय के स्वरूप पर प्राचार्य नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने इस प्रकार प्रकाश डाला है : थापन 1.:. ..1 याला सुहदुक्ख-सुबहुसस्सं कम्मवखेत्त' कसेदि जीवनमान | युगवाणा संसारदुरमेरं तेण कसानोत्ति बेति ॥ २८२ ।। गो. जी. जिस कारण सुख, दुःख रूप बहु प्रकार के तया संभार रूप * सुदूर मर्यादा युक्त ज्ञानावरणादि रूप कर्म क्षेत्र (खेत) का कर्षण (हलादि द्वारा जोसना आदि) किया जाता है, इस कारण इसे कषाय कहते हैं। क्रोधादि कषाय नाम का सेवक मिथ्या दर्शन आदि संक्लेश भाव रूप बीज को प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशबंध लक्षण
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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