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________________ मार्गदर्शक :- अ : परिकर्म में चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीप सागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति पांच अधिकार हैं । दूसरे भेद सूत्र में ... असामी प्रायविशाराहारानके नामों का परिज्ञान असंभव है। प्राचार्य कहते हैं 'ण तेसिं णामाणि जाणिज्जति संपहि विसिटु वएसाभावादो'- उनके नामों का परिज्ञान नहीं है, इस समय उनके विषय में विशिष्ट उपदेश का सदभाव नहीं हैं। • यह सूत्र नाम का अर्थाधिकार तीन सौ बेसठ मतों का वर्णन करता है। जीव प्रबंधक ही है, अवलेपक ही है, निगुण ही है, प्रभोक्ता ही है, सवंगत ही है, अणुमात्र ही है, निश्चेतन ही है, स्वप्रकाशक ही है, पर प्रकाशक ही है, नास्ति स्वरूप ही है; इत्यादि रूप से नास्तिवाद, क्रियावाद, अज्ञानवाद, ज्ञानवाद, और वैनयिकवाद का तथा अनेक एकान्तवादों का इस सूत्र में वर्णन किया गया है। - प्रथमानुयोग तीसरे अधिकार में चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण के पुराणों का, जिनेन्द्र भगवान, विद्याधर, चक्रवर्ती, चारणऋद्धिधारी मुनि और राजा प्रादि के वंशों का वर्णन किया गया है। इसके चौबीस अर्थाधिकार हैं । चौबीस तीर्थंकरों के पुराणों में समस्त पुराणों का अंतर्भाव हो जाता है-'तित्थयरपुराणेसु सव्वपुराणाणमंतब्भावादो'। पूर्वगत नामक चतुर्थ अर्थाधिकार में उत्पाद-व्यय-प्रीव्य प्रादि रूप विविध धर्मयुक्त पदार्थों का वर्णन किया गया है | इसके चौदह भेद इस प्रकार कहे गए हैं :-उत्पाद, अग्रायणी, वीर्यानुवाद, अस्तिनास्ति-प्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, प्रात्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यान-प्रवाद, विद्यानुवाद, कल्याणप्रवाद, प्राणावायप्रवाद, क्रियाविशाल और लोकबिन्दुसार । पंचम पूर्व ज्ञानप्रवाद के द्वादश अर्थाधिकार है। प्रत्येक अर्थाधिकार के बीस, बीस अर्थाधिकार हैं, जिन्हें प्राभूत कहते हैं । प्राभूत संज्ञावाले अधिकारों में से प्रत्येक
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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