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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज कसाय पाहुड मुत्त पुव्वमि पंचमम्मि दुदसमे बत्थुम्मि पाहुडे तदिए । पेज्जति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं खाम ॥ १ ॥ ज्ञानप्रवाद नाम के पंचम पूर्व के भेद दशमी वस्तु में पेज्जपाइड नाम का तीसरा अधिकार है, उससे यह कसायपाहुड उत्पन्न हुआ है । विशेष – 'पूर्व' शब्द दिशा, कारण तथा शास्त्रका वाचक हैं, किंतु यहाँ 'परणवसेण एत्थ सत्यवाचो घेत्तव्बो' ( पृष्ठ ३, ताम्र पत्र प्रति) प्रकरण के वशसे शास्त्र वाचक अर्थ ग्रहण करना चाहिये । 'वत्थु' शब्द भी अनेक ग्रंथों में प्रसिद्ध है, किन्तु यहां 'वत्सहो सत्यवाच घेत्तन्वो वस्तु शब्द को शास्त्र वाचक ग्रहण करना चाहिये । 'पेज्ज सद्दो पेज्जदोसाणं दोपहपि वाचश्रो सुपसिद्धो वा' पेज्ज शब्द पेज्ज श्रीर दोस दोनों का वाचक सुप्रसिद्ध है। 'पेज्ज' प्रेय अथवा राग का वाचक हैं तथा 'दोस' द्वेष का वाचक है । राग और द्वेष को कषाय शब्द द्वारा कहा जाता है । पेपाहुड से कषाय पाहुड (प्राभृत) शास्त्र उत्पन्न हुआ । } शंका- जब पेज और कषाय में प्रभिन्नता है, तब उनमें उत्पाद्य और उत्पादक भाव किस प्रकार संभव है ? समाधान -- उपसंहार्य श्रीर उपसंहारक में कथंचित् भेद पाया जाता है, इस अपेक्षा से पेज्जपाहुड के उपसंहार रूप कषाय पाहुड में कथंचित् भिन्नता मानना उचित है । द्वादशांग जिनागम का द्वादशम भेद दृष्टिवाद अंग है। उसके परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व और चूलिका पंच भेद कहे गए हैं। ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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