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________________ आत्मा का ध्यान द्वारा कम का क्षय होता है। यह सदुपदश अत्यन्त महत्वपूर्म है मुंच परिग्रहसन्दमशेष चारित्रं पालय सविशेषम् । __ काम-क्रोधनिपलिन यंत्रं ध्यानं कुरु रे जीव पवित्रम् ॥ 20 अरे जीव ! समस्त परिग्रह का त्याग कर । पूर्ण चारित्र का पालन कर। काम तथा क्रोध को नष्ट वाले यंत्र समान विशुद्ध आत्मा का ध्यान कर । पंचास्तिकाय में ध्यान को अग्नि कहा है, जिसमें शुभ, अशुभ सभी कर्म का क्षय हो जाता है। जस्स मा विजदि रागो दोसो मोहो व जोगपरिकम्मो । वस्स सुहासुह-उहणो झाणमो जायए अगणी ॥१४६॥ जिसके राग, द्वेष, तथा मोह का क्षय हो गया है और योगों को क्रिया भी नहीं है, ऐसे केवलज्ञानी जिनेन्द्र के शुभ अशुभ का क्षय करने वाली ध्यानमय अग्नि प्रचलित होती है। जिस अद्भुत शक्ति संपन्न अग्नि में प्रचण्ड कर्मराशि का विनाश होता है, वह अग्नि शुक्लध्यान रूप है। मल्लिनाथ तीर्थंकर की स्तुति में समन्तभद्र स्वामी ने यही बात कही है: यस्य च शुक्लं परमतयोग्निानमनंत दुरितमधाचीन् । तं जिनसिंह कृतकरणीयं मल्लिमशल्यं शरणभितोस्मि ॥५| ___ मैं उन कृतकृत्य, अशल्य जिनसिंह मल्लिनाथ की शरण में जाता हूँ, निनकी शुक्लभ्यानरूपी श्रेष्ठ अग्नि में अनंत पाप को दग्ध किया गया। ध्यान का उपाय-कर्मक्षय करने की अपार शक्ति संपन्न ध्यान के विषय में द्रव्यसंग्रह का यह कथन महत्त्वपूर्ण है : जं किंचिवि चितंतो णिरीह वित्ती हो जदा साहू । तण य एयर्स तदाहु व तस्स णिच्छियं ज्झाणं ॥५५॥ - साधुध्येय के विषय में एकाग्रचित्त होकर जिस किसी पदार्थ का चितवन करता हुमा समस्त इच्छामों से विमुक्ति रूप स्थिति को प्राप्त होता है, उस समय उस ध्यान को निश्चय ध्यान कहा गया है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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