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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ग्रंथ के अधिकार-इस कसाय पाहुष्ट ग्रंथ में दो गाथाओं द्वारा पंचदश अधिकारों के नाम इस प्रकार गिनाए हैं : पेज्ज-दोस बिहत्ती द्विदि-अणुभागे च बंधगे ने य । वेदम-उवजोगे वि य च उट्ठाण-वियंजणे चे च ॥ १३ ॥ सम्मत्त-देसविस्यी संजम-उथसामणा च खवणा च। दसण-चरितमोहे श्रद्धा परिमाण णिद्द सो ॥ १४ ।। :-0 दर्शन और चरित्र मोह के संबंध में (१) प्रेयोद्वेष-विभक्ति (२) स्थिति-विभक्ति (३) अनुभाग-विभक्ति (४) अकर्म बंध की अपेक्षा बंधक (५) कमबंधक की अपेक्षा बंधक (६) वेदक (७) उपयोग (८) चतुः स्थान (E) व्यंजन (१०) दर्शनमोह की उपशामना (११) दर्शन मोह की झपमा (१२) देशविरति (१३) संयम (१४) चारित्र मोह को उपशामना (१५) चारित्र मोह की क्षपणा; ये पंद्रह अर्थाधिकार है। इनसे सिवाय यतिवृषभ प्राचार्य द्वारा पश्चिम स्कंध अधिकार की भी प्ररूपणा की गई है। चूमिकार ने सयोगकेवली के अघातिया कर्म का कथन इसमें किया है। कषायों से छूटने का उपाय-यह जीव निरन्तर राग द्वेष रूप परिणामों के द्वारा कर्मों का संचय किया करता है। बाह्य वस्तुओं के रहने पर उनसे राग या द्वेष परिणाम नत्पन्न हुआ करते हैं, अतः आचार्य गुणभद्र आत्मानुशासन में कहते है : रागद्वेषी प्रवृत्ति स्यात्रिभृचिस्तनिषेधनम् । तौ च बाह्यार्थ-संबद्धौ तस्मात्तान् सुपरित्यजेत् ॥ २३७ ॥ राग तथा द्वेष को प्रवृत्ति कहते हैं। राग-द्वेष के अभाव को निवृत्ति कहते हैं। राग और द्वेष का संबंध बाह्य पदार्थों से रहा करता है; इस कारण उन बाह्य पदार्थों का परित्याग करे। पर वस्तुओं का परित्याग के साथ उनसे भिन्नपने अर्थात अकिंचनत्व की भावना करे। इस अकिंचनव के माध्यम से यह जीव | मोक्ष को प्राप्त करता है। ध्यान-कषाय रूप प्रचण्ड शत्रुओं से छूटने के लिए अन्तरंग बहिरंग परिग्रह का परित्याग करके आत्मा का ध्यान करना चाहिए। उस
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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