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________________ ( १ ) :.. . सामान 1. प्राणा समाधान ऐसा नहीं है, "शेषकर्ममा मोइतंत्रत्वात्" शेष कर्म मोह के प्राधीन हैं। मोह के बिना शेष कर्म अपने अपने कार्य की निष्पत्ति में व्यापार करते हुए नहीं पाए जाते हैं। प्रश्न--"मोहे विनष्टेपि कियन्तमपि कालं शेषकर्ममा सत्त्वोपलभभावशेझ तत्त्वाविधिवेचविखागोबा महाराजाने पर भी बहुत समय पर्यन्त शेप कर्मों का सत्व पाए जाने से उनको मोह के आधीन नहीं मानना चाहिये। समाधान ऐसा नहीं है। कारा मोहरूपी शत्रु के क्षय होने पर जन्म-मरण रूप संसार के उत्पादन की सामर्थ्य शेष कर्मों में नहीं रहने से "तत् सत्त्वस्यासत्व-समानत्वात"-उनकी सत्ता असत्व के समान हो जाती है। केवलज्ञानादि संपूर्ण श्रात्मा गुसों के आविर्भाव को रोकने में समर्थ कारण होने से मोह फर्म प्रधान शत्रु है उसके. नाश होने से अरिहंत यह संज्ञा प्राप्त होती है। ध० टी० भा० १.१.१ पृ०४३) कषाय पर नय दृष्टि-मोहनीय के भेद क्रोध, मान,माया तथा लोभ रूप कषाय चतुष्टय विविध क्यों की अपेक्षा 'पेज्ज'-प्रेय (राग) तथा 'दोस' (द्वेष ) रूप कही गई हैं। चूमि सूत्रकार यतिवृषभ आचार्य ने कहा है कि "णेगम-संगहास कोहो दोसो, माशो दोसो माया पेज्ज, लोहो पेज"-नैगम नय तथा संग्रह नय की अपेक्षा क्रोध द्वेप है, मान द्वेष है तथा माया और लोभ प्रेय रूप हैं। "ववहारण्यस्म कोहो दोसो, मासो दोस्रो, लोहो पेज" व्यवहार. मय से क्रोध, मान, माया द्वेष रूप हैं, लोभ प्रेय है । ऋजुसूत्रनय से क्रोध द्वेष है, मान न द्वेष है न प्रेय है । लोभ प्रेय है। शब्द नय की अपेक्षा क्रोध, मान, माया तथा लोभ द्वेष रूप है। लोभ कथाचिन् प्रेय है। यहां विवेचन में विविधता का कारण भिन्न विवक्षा है। कौन कषाय हर्ष का हेतु है, तथा कौन हर्ष का हेतु नहीं है, यह विवक्षा मुख्य है। . नोकषायों में हास्य, रति, स्त्रीवेद पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद लोभ के समान राग के कारण है, अतः 'प्रेय है। भरति, शोक, भय और जुगुप्सा द्वेष रूप हैं, क्योंकि ये क्रोध के समान द्वेष के कारख है। विशेष विवेचन प्रथ के पृष्ठ २४ से २८ पर्यन्त किया गया है।)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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