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________________ ( ७० ) Fqी इन क्रोधादि के शक्ति की अपेक्षा चार प्रकार, लेश्या की अपेक्षा चौदह प्रकार तथा भायु के बंधस्थान की अपेक्षा श्रीस प्रकार कहे गये हैं। शिला मेद समान जो क्रोध का उत्कृष्ट शक्ति स्थान है, उसमें कृष्ए लेश्या ही होती है। भूमि भेद समान क्रोध के अनुत्कृष्ट शक्ति स्थान में कम से कृष्ण आदि छह लेश्या होती हैं । (१) वहां मध्यम कृष्ण लेश्या, (२) मध्यम कृष्ण लेझ्या तथा उत्कृष्ट नील लेश्या, (३) मध्यम कृरम लेश्या, मध्यम नील लश्या, उत्कृष्ट कपोतलेश्या, (४) मध्यम कृषरस नील कपोत लेश्या जघन्य पीत; (४) मध्यम कृष्णा नील-कपोत-तेजो लेश्या, जघन्य पद्मलेश्या, (६) मध्यम कृष्ण-नील-कृपोत-तेज-पद्म जघन्य शुक्ल लेश्या रुप स्थान है। मार्गदर्शककोध आचालीप्रोग्यासासागो अनहालथान है, उसमें छह भेद होते हैं (१) जघन्य कृष्ले श्या, और शेष पांच मध्यम लेश्या (२) जघन्य नील तथा शेष चार मध्यम लेश्या (३) जघन्य कापोत तथा शेष दीन मध्यम लेश्या (४) उत्कृष्ट पीत, मध्यम पन तथा मध्यम शुक्ल (५) उत्कृष्ट पद्म तथा मध्यम शुक्ल (६) मध्यम शुक्ल रूप स्थान है। क्रोध का जल रेखा समान जघन्य स्थान मध्य शुक्ल से रूप , एक स्थान है। इस प्रकार क्रोध के छह लेश्याओं की अपेक्षा चौदह भेद हैं। ऐसे मानादि में भी जानना चाहिये ।-"अननैव क्रमेस मानादीनामपि चतुर्दशलेश्याश्रितस्थानानि नेतव्यानि ।” (पृ. ६२१ गो. जी.) भायु के बीस बंधा बंधस्थानों का खुलासा गाथा २६३, से २६५ तक की गो. जीवकांड की बड़ी टाका में किया गया है। उनमें पांच स्थानों में आयु बंध नहीं होता है । शेष पंद्रह स्थानों में प्रायु का अंध होता है । जीव मुख्य शत्र-आत्मा के निर्वाण लाभ में बाधक होने से सभी कर्म जीव के लिए शत्रु हैं, किन्तु मागम में शत्र रूप से मोह कम का उल्लेख किया जाता है। धवला टीका में 'हमो अरिहंवाएं' इस पद की व्याख्या करते हुए वीरसेन स्वामी लिखते हैं-"नरक-निर्यक कुमानुष्यप्रेतावास-गताशेष-दुःखप्राप्रि-निमित्तत्वारि-भौंहः" (नरक, वियच. कुमनुष्य तथा प्रेत इन पर्यायों में निवास करने से होने वाले समस्त दुखों की प्राप्ति का निमित्तकारण होने से मोह को 'रि' कहा हैं । शंका-"तथा च शेषकर्मव्यापारो वैफल्यमुपेयादिति चेत् , न मोह को ही शत्रु मानने पर शेष कर्मों का कार्य विफलता को प्राप्त हो जायगा!
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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