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________________ धारिन चक्रवर्ती १०८ क्षपकराज आचार्य शांतिसागर महाराज को ३६ दिन पर्यन्त होने वाली यम सल्लेखना के २६ ब दिन दी गई धर्मदेशना को स्मरण करना चाहिए, जिसमें उन्होंने सान्त्वना तथा अभय प्रद वाणी में कहा था, "घरे प्राणी भय का परित्याग कर और संयम का माश्रय अवश्य ग्रहण कर ।" मोक्ष परम पुरुषार्थी को मिलता है। यह स्मयं धतुर्थ पुरुषार्थ कहा गया है। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने भावपाहुड में कहा है, कि अत्यन्त अल्पज्ञानी होते हुए भी शिवभूति नामकी पुरुषार्थी आत्मा ने सफल कर्मों का हय करके मोक्ष प्राप्त किया । उस आत्मा ने भौगों पर विजय प्राप्त कर के मुनि पद को धार किया तथा सत्साहस सहित हो कर्मा के साथ युद्ध किया तथा अन्त में मोह कर्म का ज्ञय करके मोच प्राप्त किया। उन्होंने निर्यात वाद का पाश्रय न ले पुरुषार्थ का मार्ग अंगीकार किया था। भावपाहुन में लिखा है सुममासम्मल भावावसुद्धा महाणिमात्रागर जी महाराज सामेण य सिवभूई केवलणाणी फुड जाओ ॥ ५३ ॥ निर्मल परिणाम युक्त तथा महान् प्रभावशाली शिवभूति मुनि ने 'तुष-माष भिन्न'-दाल और छिलका जैसे पृथक है, इसी प्रकार मेरा आत्मा भी कर्मरूपी छिलके से जुदा है, इस पद को स्मरस करते हुए (भेद विज्ञान द्वारा) केवलज्ञान पाया था। शिषभूति मुनिराज का यह दृष्टान्त जन लोगों को सत्पथ यवलाता है, जो मन्दज्ञानी व्यक्ति को ब्रतापरण में प्रवृत्त होने से गोकते हैं अथवा विन्न उपस्थित करते हैं। यथार्थ मात है कि यहि चिश में मचा घराय भाव उत्पन्न हो गया है, वो अल्पज्ञानी को आत्म कल्याण हेतु उच्च त्याग में प्रवृत्त होवे देखकर हर्षित होना चाहिए, न कि विधकारी तत्व पनना चाहिए। मात्मा की शक्ति अपार है। फर्म की शक्ति भी अदभुत है। वह (अनतक्तिधारी तथा प्रध्यार्थिक दृष्टि से अनंत कानवान भात्मा को निगोदिया की पर्याय में अक्षर के मनतवें भाग ज्ञानवाला बनाता है। कार्तिकेयानुप्रेता में कहा है का वि अपुव्वा दोसदि पुग्गल-दध्वस्स एरिसी सनी। केवलणाण-सहाचो चिणासियो धार श्रीयस्स ॥२१॥ पुद्गल कर्म की भी ऐसी अद्भुत सामर्थ्य है, जिसके कारण जीप का केवलबान स्वभाष विनाश को प्राप्त हो गया है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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