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________________ - श्री प्रभु (५७ ) रामाना खामगाव जि. अट डाणा विवेकी तथा पुरुषार्थी धर्मात्मा देव का काम न बनकर तथा नियतिवाद को आदर्श न बनाकर आत्मशक्ति, जिनेन्द्रभक्ति तथा जिनाम की देशना को अपने जीवन का श्राश्रय केन्द्र बनाकर सच्चरित्र होता हुआ उज्वल भविष्य का निर्माण करता है। जो कायर तथा पौरुष- शून्य देव या नियतिवाद को गुण-गाथा गाते हुए पाप पथ का परित्याग करने से डरने हैं, वे प्रमादो अपने नर जन्म रूपी चिन्तामणि रत्न को समुद्र में फेक देते हैं। नियतिवाद का एकात मिथ्यात्व है। अमृतचंद्रर ने कथंचित रूप में नियतिवाद का समर्थन किया है। उन्होंने लिखा है "निर्यातनयेन नियमितपण्य-वहिवन्नियत-स्वभावासि । अनियतिनयेना नियनिमित्तौपण्यपानीयवदनियतस्वभावासि"-नयति नय में जीव नियमित उपस तायुक्त अम्नि सदृश नियत स्वभाव युक्त है। अनियत नय से वह अनियमित निमितवश उष्णतायुक्त जल सदृश अनियत स्वभाव है। (प्रवचनसार गाथा २७५ टोका) मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज .इस प्रसंग में समंतभद्र स्वामी का यह दार्शनिक विश्लेषण महत्वपूर्ण मार्गदर्शन करता है: अबुद्धि - पूर्वापेक्षाया-मिष्टानिष्टं स्वदेवतः धुद्धिपूर्वव्यपेक्षाया-मिष्टानिष्टं स्वपौरुषात् ।। श्रा. मी. ६१ --- अधुद्धिपूर्वक अर्थात् अतर्कितल्प से उपस्थित इष्ट - अनिष्ट कार्य । अपने देव की मुख्यता से होता है । युद्धपूर्वक इष्ट अनिष्ट फल को/ ओ प्राप्ति होती है, उसमें पुरुषार्थ की प्रधानता रहती है। इस विषय को बुद्धिमाही बनाने के लिए सोमदेव सूरि यह रांत देते हैं- सोते हुए व्यक्ति का सर्प से स्पर्श होते हुए भी मृत्यु का नहीं होना देव की प्रधानता को सूचित करता है । सपे को देखकर बुद्धिपूर्वक श्रात्म संरक्षण का उद्योग पुरुषार्थ की विशेषता को व्यक्त करता है। भोगी वथा अंधकार पूर्ण भविष्य वाला व्यक्ति वात्माराधन के कार्य में दैव तथा नियतिवाद का आश्रय लेता है तथा जीवन को उच और मंगल मय बनाने के कर्तव्य से विमुख बनकर पाप के गर्त में पटकने वाले हिंसा, असत्य, चोरी, छल, कपट, तीन तृपणा, परनी सेवन, सुरापान आदि कार्यों में इच्छानुसार अनियंत्रित प्रवृत्ति करता है। इस प्रकारं भोगी प्राणी देव और पुरुषार्थ के विवेचन रूप महासागर का मंथन कर अमृत के स्थान में विष को निकाला करता है। विषय भोग संबंधी कार्यों में वह पुरुषार्थ की मूर्वि बनता है सथा त्याग एवं सदाचार के विषय में यह देव का आश्रय ले हरा करता है। ऐसी कमजोर प्रात्मा को
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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