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________________ अंतर्मुहूर्त में केवल ज्ञान प्राप्त करने वाले महान तत्वज्ञानी चक्र वर्ती भरतेश्वर ने गृहस्थावस्था में पुण्य का समुचित मूल्यांकन किया था। इससे उन्होंने प्रमु आदिनाथ की पुण्यदायिनी स्तुति करने के पश्चात ये महत्वपूर्ण शब्द कहे थे, ..... ..... ... भगवन् ! त्वगुणस्तोत्राद् यन्मया पुण्यजितम् । तेनास्तु त्वत्पदाम्भोजे पर भक्ति सदा मे ॥३३॥१६६॥म. पु.॥ मार्गदर्शक.: आचार्य श्री सुविष्टिासागर जी महाराज हे भगवन ! मैंने आपके गुरम-स्सवन द्वारा जो पुण्य प्राप्त किया है, उसके फल स्वरूप आपके घरपकमलों में मेरी सर्वदा श्रेष्ठ भक्ति हो । जो व्यक्ति पापों तथा व्यसनों में आसक्त होते हुए पुण्यार्जन के विरुद्ध प्रलाप किया करते हैं, वे विष का बीज बोते हुए जैन सुमधुर फलों को चाहने है, जो पुण्यरुपी वृद पर लगा करते हैं किन्तु पाप बीज से उत्पन्न वृक्ष द्वारा जब दुःवरूपी फलों की प्राप्ति होती है, तब वे मार्त और रौद्रध्यान की मूर्ति बनकर और भी कष्ट-परंपरा का पथ पकड़ते हैं। विवेकी गृहस्थ को जिनमेन स्वामी इस प्रकार समझाते है- ' पुण्य का फल- . . . . . पुण्यात् चक्रधरश्रियं विजयिनीमेन्द्रीच दिव्यश्रियम् ।।.. पुण्यात् तीर्थकाश्रियं च परमां नःश्रेयसी चाश्नुते । पुण्यादिन्यसुभृच्छुियां चतसृणा-माविभवेद् भाजनम् । तस्मात्पुण्य मुपाजयन्तु सुषियः पुण्पाजिननेन्द्रागमात् ॥३०॥२६।। पुण्यसे सर्व विजयिनी चक्रवर्ती की लक्ष्मी प्राप्त होती है।- पुण्य से इन्द्र की दिव्यश्री प्राप्त होती है । पुण्य से ही तीर्थकर की नक्ष्मी प्राप्त होती है तथा परम कल्याणरूप मोच लाक्षी भी पुरयसे प्राप्त होती है। इस प्रकार पुस्यसे ही यह जीप चार प्रकार की तक्ष्मी की प्राप्त करता है। इससे हे सुधीजनो ! तुम लोग भी जिनेन्द्र भगवान के पवित्र मागम के अनुसार पुण्य का उपार्जन करो।' : "- - प्रश्न-पुण्य सम्पादक्र पूजा, दान, बस तथा उपवास समात्मा . को क्या लाभ होगा? - . समाधान पूजादि कारमा सेकषाय भाव मन्द होते हैं। - आस्मा की विभीष परमति न्यून होने लगती है। उससे अशुभ कर्म का
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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