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________________ करता है, वह बंध है अश्वा जीव और पुद्गल के प्रदेशों का पास्गर मिल जाना बंध है। सामान्य दृष्टि से लोक कहा करते हैं, कमों के द्वारा जीव अपनो स्वतंत्रता को खोकर परतंत्रायस्था को प्राप्त होता हुआ संसार में परिभ्रम किया करता है । इस विषय में आशाधरजी ने एक विशेष दृष्टि से चिंतन करके कहा है, कि न केवल जीव विवशता को प्राप्त होता है, बल्कि पुद्गल भी अपनो स्वाधीनता को स्वोकर स्थिति विशेष पर्यन्त जी के साथ बंधन बद्धता का अनुभव करता है। यदि किसी जीव ने दर्शन मोहनीय का बंध किया है, तो सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर पर्यन्त बह मुद्गल-स्कन्ध जीय के साईन कर रहेपातयघियविधिझिगस्थली पर्वामींन को मथवा परमाणु रूप सूक्ष्म परिणमन को नहीं प्राप्त होगा। सूक्ष्म प्रात्मा के साथ एक क्षेत्रावगाही बनने काला कर्म धुञ्ज भी अनंतानंत परमाणु प्रचय स्वरूप होत भी पक्षु इंद्रियादि के अगोचर रहता है। कर्म रज के पुद्गल स्कन्ध इतने सूक्ष्म रहते हैं, कि उनको छेटन, भेदन, वनादि द्वारा तनिक भी प्रति नहीं पहुँचदी है । कार्माम वर्गणार सूक्ष्म होने के साथ जी के प्रदेशों पर भनेतानंत संख्या में पाई जाती है। ---- । प्रश्न- ब्रहद द्रव्यसंग्रह दौका में यह प्रश्न किया है कि गग द्वेष अादि परिणाम "f कर्मजनिता; कि जोयजनिताः इति" क्या कर्मों से उत्पन्न हुए हैं या जीव से उत्पन्न हुए हैं ? --- समाधान--स्त्री और पुरुष के संयोग से उत्पन्न हुए पुत्र के समान, चूना तथा हल्दी के संयोग से उत्पन्न हुए वर्ण विशेष के समान राग और द्वेष जोर और कर्म के संयोग जन्य हैं। नय की विवक्षा के अनुसार विवक्षित एकदेश शुद्ध निश्चग्रनय से राग द्वेष कर्मनित कहलाते हैं। प्रशुद्ध निश्चय नय से वे जोवजनिस कहलाते हैं। यह अशुद्ध निश्चयनय शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा से व्यवहारनय ही है। प्रश्न -शुद्ध निश्चयनय से ये राग-द्वेष किसके हैं । समाधान-स्त्री और पुरुष के संयोग विना पुत्र की उत्पत्ति नहीं होती है । चूना और हल्दी के संयोग बिना रंग विशेष की उत्पत्ति नहीं होती है । इसी प्रकार शुद्ध निरषय नय की अपेक्षा जीव और पुद्गल दोनी द्रव्य शुद्ध हैं। इनके संयोग का अभाव है । शुद्ध नय की अपेक्षा जीव का संसारी और मुक्त भेद नहीं पाया जाता है। उस नय की अपेक्षा जीव के कर्मों का अभाव है। वह नय सिद्धों सथा निगोदिया जीवों में भेद की
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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