SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री ( २१७ ) र .. .. मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सागर जी महाराज चिशेष-शंका-"समयपबद्धसेसयं णाम कि ? समयंप्रबैंशेष किसे कहते हैं। समाधान-१ समय प्रबद्ध का वेदन करने से शेष बचे जो प्रदेशान दिखने हैं, उसके अपरिशेषित अर्थात् समस्त रूप से एक समय में उदय आने पर उस समयप्रबद्ध का फिर कोई अन्य प्रदेश बाकी नहीं रहता है, उसको समयप्रवद्धशेष कहते हैं । प्रश्न-भवबध्द शेष का क्या स्वरूप है ? समाधान-भवबद्धशेष में कम से कम अंत मुहूर्त मात्र एक भवबद्ध समयप्रबद्धों के कर्म परमाणु ग्रहण किए जाते हैं। शंका- एक स्थिति विशेष में कितने समय प्रबद्धों के शेष बचे हुए कर्म परमाणु होते हैं ? समाधान—“एक्कस्स वा समयपबद्धस्स दोण्हं वा तिण्हं बा, एवं गंतूण उक्कस्सेण असंखेजदिभागमेत्ताणं समयपवद्धाणं"--एक स्थिति विशेष में एक समयप्रबद्ध के, दो के अथवा तीन समयप्रबद्धों के भी शेष रहते हैं। इस प्रकार एक एक समयप्रबध्द के बढ़ते हुए क्रम से उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र समयप्रबध्दों के कर्म परमाणु शेष रहते हैं। । इसी प्रकार भवबध्दशेष भी जानना चाहिए । एक स्थिति विशेष में एक भवबध्द के, दो या तीन भवबध्द शेष के इस प्रकार उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र भबबध्दों के कम परमाणु पाये जाते हैं। यह भवदशेष वा समयबध्द शेष अनंत अविभाग प्रतिच्छेद रूप अनुभागों में नियम से वर्तमान रहता है। १ जंसमयपबध्दस्स वेदिदसेसरगं पदेसग्गं दिस्सइ, तम्मि अपरिसेसिदम्मि एकसमएण उदयमागदम्मि तस्स समयपबध्दस्स अण्णो कम्मपदेसो वा पत्थि तं समयपबध्दसेसगं णाम ( २१२७ )
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy